Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्री नरविक्रम
चरित्रे |
।। ५२ ।।
www.kobatirth.org
कहनयरमहत्तरया उवयरिया णेगसोऽवि कजेसु । माणंति न मं सप्पणयवयणमेतेण वियासा १ || ३ || जयसे हरकुमरो सो विजाहरराय सुकुलजाओऽवि । तह उवयरिओऽदि कहं उवेहए मं तदियरोव्व ९ ॥ ४ ॥ होउ वा किं एएण विगप्पिएण १, अत्तहियमियाणिं कीरह मुचइ इमं नगरं गम्म अन्नत्थ देसे ओलग्गिजइ अनो गरुओ नरवत्ति, अहवा सयलजयपयडपरकमस्स सिरिअवंतिसेण महानराहिवस्स सुओ होऊण कड़वयदिणाई रजरिद्विमुद्धरमणुभविय कमियाणि अन्नस्स हेड्डा ठाइस्तामिति सव्वा न जुत्तं परिचितिउं, भैरवपडणेण अत्तपरिचाओ चेव संपयं मे वो वाहिविसुद्धोति निच्छिऊण निग्गओ नयराओ लग्गो भैरवपडणाभिमुहं वत्तिणीए अखंडपयाणेहिं पवश्चंतो संपत्तो तरुणतरुखंड मंडियं उन्भड सिहंडितंडवाडंबररमणिअं हंससारसकपिंजलको किलकुल कलकलरवमुहलं पुंनागनागजंबुजबिर निबंबकथं नगर महत्तरका उपचरिता अनेकशोऽपि कार्येषु । मानयन्ति न मां सप्रणयवचनमात्रेण विहताशाः ॥ ३ ॥ जयशेखरकुमारः स विद्याधरराजमुकुलजातोऽपि । तथोपचरितोऽपि कथमुपेक्षते मां तदितर इव
|| 8 ||
भवतु वा, किमेतेन विकल्पितेन ? आत्महितमिदानीं क्रियते, मुच्यत इदं नगरं गम्यतेऽन्यत्र देशे, अवलग्यते अन्यो गुरुको नरपतिरिति अथवा सकलजगत्प्रकटपराक्रमस्य श्रीअवन्तिसेनमहानराधिपस्य सुतो भूत्वा कतिपयदिनानि राज्यर्द्धिमुद्धरामनुभूय कथमिदानीमन्यस्याधः स्थास्यामीति, सर्वथा न युक्तं परिचिन्तयितुम्, भैरवपतनेन आत्मपरित्याग एव साम्प्रतं मम सर्वोपाधिविशुद्ध इति निश्चित्य निर्गतो नगरात् लग्नो भैरवपतनाभिमुखं वर्तन्यामखण्डप्रयाणैः प्रव्रजन् सम्प्राप्तस्तरुणतरुषण्डमण्डितमुद्भटशिखण्डताण्डवाडम्बररमणीयं हंससारस कपिञ्जलकोकिलकुलकल कलरवमुखरं पुन्नागनागजम्बूजम्बीरनिम्बाम्रचम्पकाशोकशोभित परिसरोद्देशं
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उपवने
मरणा
भिलाषः ॥
॥ ५२ ॥

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150