Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie
पुत्रवर
प्रदानम् ॥
नरविक्रमचरित्रे।
॥२४॥
PEOCALCRECONOCORRECORRECI
इय तुह असरिससाहससुंदरचरिएण हरियहिययाए । मम साहसु किंपि वरं जेणाहं तुज्झ पूरेमि ।। २६ ॥ ताहे मउलियकरकमलसेहरं नामिउं सिरं राया । भणइ तह दसणाओऽवि देवि! अन्नो वरो पबरो? ।। २७ । भणियं सुरीए नरवर ! इयरजणोच न जहवि पत्थेसि । तहवि तुह बंछियत्थो होही मज्झाणुभावेण ।। २८ ।। इय भणिए नरवइणा पराएँ भत्तीएँ पणमिया देवी । लच्छिच्च पुण्णरहियाण झत्ति असणं पत्ता ॥ २९ ।।
नरिंदोऽवि तारिसमच्चम्भुयं देवीस्वं सहसच्चिय नयणगोयरमइकंतमुवलब्भ चिंताकल्लोलमालाउलो एवं परिभावेइ81 किमेयं सुमिणं उआहु विभीसिया अहवा एयस्स चेव दुट्टकावालियस्स मायापवंचो किं वा मम मइविभमो उयाहु अवितहमेयंति ?,
इति तबासशसाहससुन्दरचरितेन तहृदयायाः । मम कथय किमपि वरं येनाहं तव पूरयामि ॥२६॥ तदा मुकुलितकरकमलशेखरं नमयित्वा शिरो राजा । भणति तब दर्शनतोऽपि देवि ! अन्यो वरः प्रवरः ।। २७ ।। भणितं सूर्या नरवर! इतरजन इव न यद्यपि प्रार्थयसि । तथाऽपि तव वान्छितार्थों भविष्यति ममानुभावेन ॥२८॥ इति भणिते नरपतिना परया भक्त्या प्रणमिता देवी। लक्ष्मीरिव पुण्यरहितानां झगिति अदर्शन प्राप्ता ॥ २९ ॥
नरेन्द्रोऽपि तादृशमस्यद्भुतं देवीरूपं सहसव नयनगोचरमतिक्रान्तमुपलभ्य चिन्ताकल्लोलमालाकुल एवं परिभावयति-किमेतत् ४ा स्वप्न उताहो विभीषिका ? अथवैतस्य चैव दुष्टकापालिकस्य मायाप्रपञ्चः ? किं वा मम मतिविभ्रम उताहो अवितथमेतदिति ?
॥२४॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150