Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्री नरविक्रम
चरित्रे | 11 3 11
*
www.kobatirth.org
विणयवंतस्स दाणाणंदिय बंदिजण संदो हुग्घुटुलटु चग्यिस्स वोलिति वासरा तस्स राइणो श्रयणपयडस्म । अन्नयाय विचित्तचित्तमणहरंमि मंदिरंमि पच्छिमरयणीसमए सुहसेजाए सुत्तस्स तस्स मंदीभूमि निदापसरे वियक्खणेण पढियमेकेण जामरक्खग पुरिसेण
जे वपुरिसप्रोह गाढप्परूढमूलसमं । वेरिकुलकमलनिद्दलणकुंजरं सयलगुणनिलयं ॥ १ ॥
पुत्तं विडं नियए पर्यमि पडिवन्नसंजमुजोगा । इह परभवे य कह ते पाविति न निव्वुई पुरिसा १ ॥ २ ॥ ( जुम्मं ) एवं च सोच्चा चिंतियं रन्ना - अहो दुल्लभमेयं, जओ मम एत्तियकालेऽवि पउरासुवि पणइणीसु न एकस्सवि कुलालवणस्स पुत्तस्स लाभो जाओ, अच्छउ सेसं, एवं ठिए य किं करेमि ? किं समाराहेमि १, कत्थ वच्चामि कस्स साहेमि १ को विनयवतो दानाऽऽनन्दित बन्दिजनसन्दोहोद्धुष्टलष्ट चरित्रस्यातिक्राम्यन्ति वासराणि तस्य राज्ञो भुवनप्रकटस्य । अन्यदा च विचित्रचित्रमनोहरे मन्दिरे पश्चिमरजनीसमये सुखशय्यायां सुप्तस्य तस्य मन्दीभूते निद्राप्रसरे विचक्षणेन पठितमेकेन यामरक्षक पुरुषेण॥ १ ॥
ये पूर्व पुरुषवंशप्ररोहगाढप्ररूढमूलसमम् । वैरिकुलकमलनिर्दलन कुञ्जरं सकलगुणनिलयम्
पुत्रं स्थापयित्वा निजके पदे प्रतिपन्नसंयमोद्योगाः । इह परभवे च कथं ते प्राप्नुवन्ति न निर्वृतिं पुरुषाः ? ॥ २ ॥ [ युग्मम् । ] एवं च श्रुत्वा चिन्तितं राज्ञा-अहो दुर्लभमेतद्, यतो ममेयत्कालेऽपि प्रचुरास्वपि प्रणयिनीषु नैकस्यापि कुलालम्बनस्य पुत्रस्य लाभो जातः, आस्तां शेषम्, एवं स्थिते च किं करोमि ? किं समाराधयामि ? कुत्र व्रजामि ? कस्य कथयामि ? क
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
याम
रक्षक
कथनम् ||
॥ ९ ॥

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150