Book Title: Sanskrit Sahitya Kosh
Author(s): Rajvansh Sahay
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 19
________________ अथर्ववेद प्रतिशाख्यसूत्र] ( ८ ) [अनर्घराघव उच्चाटन मन्त्र भी दिये गए हैं। समाज-व्यवस्था-'अथर्ववेद' में सामाजिक-व्यवस्था के सम्बन्ध में भी मन्त्र हैं । इसके कुछ मन्त्रों में माता-पिता, पुत्र, पति-पत्नी, भाई-बहिन आदि के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन है। अध्यात्मवाद-अध्यात्मवाद 'अथर्ववेद' का मुख्य प्रतिपाद्य है। नवम काण्ड का नवम सूक्त, जो 'अस्य वामस्य' के नाम से प्रसिद्ध है, अध्यात्मविद्या का रूप उपस्थित करता है । 'अथर्ववेद' में बहुदेवतावाद का निराकरण कर एकेश्वरवाद की स्थापना की गयी है। इन्द्र, वरुण, मित्र, यम आदि अलग-अलग देवता न होकर गुण-भेद से एक ही ईश्वर के भिन्न-भिन्न नाम हैं। इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्यः स सुपर्णो गरुत्मान् । एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति अग्नि यमं मातरिश्वानमाहुः । इसमें परब्रह्म एवं परमात्मा के स्वरूप का भी विवेचन है तथा परमतत्त्व को नाना संज्ञाओं से अभिहित किया गया है। वह काल के नाम से जगत्, पृथ्वी एवं दिव् का उत्पादन एवं नियमन करता है। इसके भूमिसूक्त में मातृभूमि की मनोरम कल्पना की गयी है तथा देशभक्ति का अत्यन्त सुन्दर चित्र खींचा गया है-माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः। १२।१।१२। सा नो भूमिसृिजतां माता पुत्राय मे पयः । मन्त्र ७० । इस वेद में वेद को माता और देव को काव्य कहा गया है"स्तुता मया वरदा वेदमाता' तथा 'पश्य देवस्य काव्यं न ममार न जीर्णति' (१०॥ ८।३२ ) इसमें ब्रह्मानुभूति का वर्णन रसानुभूति की तरह किया गया है-रसेन तृप्तो न कुतश्चनो नः १०८।४४ । 'अथर्ववेद' की रचना 'ऋग्वेद' के बाद हुई थी। इसका प्रमाण इसकी भाषा है, जो अपेक्षाकृत अर्वाचीन प्रतीत होती है। इसमें शब्द बहुधा बोलचाल की भाषा के हैं। इसमें चित्रित समाज का रूप भी 'ऋग्वेद' की अपेक्षा विकास का सूचक सिद्ध होता है। 'अथर्ववेद' में भौतिक विषयों की प्रधानता पर बल दिया गया है, जबकि अन्य वेदों में देवताओं की स्तुति एवं आमुष्मिक विषयों का प्राधान्य है। आधार ग्रन्थ-१. प्राचीन भारतीय साहित्य भाग १, खण्ड १-डॉ० विष्टरनित्स (हिन्दी अनुवाद), २. संस्कृत साहित्य का इतिहास-मैकडोनल, ३. वैदिक साहित्य और संस्कृति-आ० बलदेव उपाध्याय ४. अथर्ववेद-(हिन्दी अनुवाद)-श्री राम शर्मा । अथर्ववेद प्रातिशाख्यसूत्र-यह 'अथर्ववेद' का (द्वितीय) प्रातिशाख्य है। इस वेद के मूल पाठ को समझने के लिए इसमें अत्यन्त उपयोगी सामग्री का संकलन है। इसका एक संस्करण (१९२३ ई० में) आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री के संपादकत्व में पंजाब विश्वविद्यालय की ग्रन्थमाला से प्रकाशित हुआ है, जो अत्यन्त छोटा है। इसमें अथर्ववेदविषयक कुछ ही तथ्यों का विवेचन है। इसका दूसरा संस्करण डॉ. सूर्यकान्त शास्त्री का भी है, जो लाहौर से १९४० ई० में प्रकाशित हो चुका है। यह संस्करण प्रथम का ही बृहद् रूप है । अनर्घराघव-यह मुरारि कविकृत सात अंकों का नाटक है [ दे० मुरारि ] इसमें संपूर्ण रामायण की कथा नाटकीय प्रविधि के रूप में प्रस्तुत की गयी है। कवि ने विश्वामित्र के आगमन से लेकर रावणवध. अयोध्यापरावर्तन तथा रामराज्याभिषेक

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