Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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जैन विचारों की आधुनिक प्रासंगिकता
III जैन विचार की विशिष्टता एवं मौलिकता का एक आधार है उनका ‘अनेकान्तवाद । तात्त्विक दृष्टि से अनेकान्तवाद सत्ता की अनेकरूपता एवं सापेक्षता का पोषक है। विश्वास किया जाता है कि सत्ता में द्रव्य में अनेक गुण या धर्म होते हैं, कुछ स्थायी, कुछ अस्थायी, कुछ भावात्मक, कुछ अभावात्मक । अनेकान्तवाद के इस तात्त्विक रूप के आधार पर उसके अन्य पक्ष भी प्रकाश में आते हैं, तथा उसी आधार पर उनका 'स्याद्वाद' एवं 'नया विचार' भी रूप लेता है। इसी बल पर विद्वानों ने यह भी दिखाया है कि कैसे अनेकान्तवाद में 'सत्तावाद' और बौद्धों के 'क्षणिकवाद'—दोनों का समन्वय हुआ
इस सिद्धान्त का व्यावहारिक पक्ष इसे आज के सन्दर्भ में भी प्रासंगिक बना देता है। यदि सत्ता का अनेक पक्ष है, यदि हर निर्णय या वस्तु पर किसी गुण का आरोपण किसी विशेष दृष्टि से ही सत्य है, तो इसका अर्थ है कि हर स्थापना एक दृष्टि से सत्य अवश्य है, किन्तु साथ-साथ अन्य स्थापनाएँ भी दूसरी दृष्टि से सत्य हैं । तो अनेकान्तवाद में निहित यह विचार स्पष्ट होता है कि किसी मत की स्थापना का अर्थ अन्य वैकल्पिक मतों को नकारना नहीं है। एक ही तत्त्व के सम्बन्ध में अनेक स्थापनाएँ एक साथ दी जा सकती हैं । इस प्रकार अनेकान्तवाद का व्यावहारिक पक्ष प्रकाश में आता है-अपने मतों के सम्बन्ध में दृढ़वादिता का त्याग, एक ऐसी उदारता, जिसमें वैकल्पिक मतों के लिए भी यथोचित सम्मान निहित हो।
__ आज की मानसिकता तो इस मूल तथ्य की उपेक्षा किये बैठी है। आज का मनुष्य विरोध सहन नहीं कर पाता, वह सदा अपनी बातों की सत्यता एवं श्रेष्ठता स्थापित करने को इस रूप में तत्पर रहता है, जैसे उसके अतिरिक्त अन्य सम्भावनाएँ ही नहीं। जातीय दंगे, आतंकवादी गतिविधियाँ, राजनैतिक दाँवपेंच, शक्ति संघर्ष-इन सबके पीछे तो यही भ्रान्त भावना है कि जो अपनी बात है, वही एकमात्र सत्य है । इस साधारणसी वास्तविकता की हम उपेक्षा किये बैठे हैं कि अन्य बातों की भी सार्थकता सम्भव है। धर्म-गुरुओं ने सहिष्णुता, पारस्परिक आदर-भाव, अन्य के प्रति सम्मान आदि पर बल दिया है, किन्तु वे सदा आग्रह करते हैं कि इन बातों को धर्माचरण एवं सद्गणों के रूप में स्वीकार किया जाय। जैन दर्शन में इन बातों का सैद्धान्तिक आधार स्थापित किया गया है। यहाँ व्यक्ति के स्वीकारने के पीछे सिद्धान्त की पकड़ है-यहाँ इस तथ्य को नहीं स्वीकारना एक स्वत:स्पष्ट सत्य के विरुद्ध जाना है। इस प्रकार अनेकान्तवाद जीवन को सहज, सरल एवं प्रेममय बनाने का एक सैद्धान्तिक आधार प्रस्तुत करता है।
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