Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 8
दोमंजिला प्रासाद उत्कीर्ण है। छज्जे पर वातायनों के पास कुछ आकृतियाँ बैठी हैं। तत्कालीन प्रासाद-वास्तु की दृष्टि से यह उत्कीर्णन महत्त्वपूर्ण है। सम्पूर्ण दृश्यावली कंस (मथुरा में) के दरबार का दृश्य प्रस्तुत करती है।
लूणवसही की देवकुलिका-सं. ११ की दूसरी छत पर सम्भवतः नेमिनाथ के वैराग्य का विस्तृत दृश्य उत्कीर्ण है, जिसमें दूसरी पंक्ति में कृष्ण और जरासन्ध के मध्य हुए युद्ध का दृश्य उत्कीर्ण है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में कृष्ण और जरासन्ध के मध्य हुए युद्ध का विस्तृत विवेचन मिलता है।४२ दृश्य में कृष्ण और जरासन्ध शर-सन्धान की मुद्रा में आमने-सामने खड़े हैं। दोनों के साथ खड्ग, खेटक, और शूलधारी विशाल पदाति और अश्वसेनाओं का अंकन हुआ है।४३
सन्दर्भ-स्रोत : १. विलियम मोनियर, मोनियर, संस्कृत अंग्रेजीकोश, पुनर्मुद्रित, दिल्ली १९८४,
पृ. १०५९ २. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, भावनगर, १९०५-१९०९, १.६.३२६-६९ ३. शाह उमाकान्त प्रेमानन्द, जैन रूपमण्डन, दिल्ली १९८७, पृ. ७२ ४. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, १.२.२१३-२६ ५. आदिपुराण (जिनसेनकृत), वाराणसी १९६२, १२. १०४-१९ ६. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, १.२.८८५-८७ ७. वही, १.४. ७०८-१२ ८. वही, १.४. ५६८-८७, आदिपुराण, ३७. ७३-७४, ८३-८४ ९. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ४.१. २२०, ४.२.२१६ १०. वही, १.६.३६८-६९ ११. वही, ८. १२. ६९-७०, जैन रूपमण्डन पृ. ७४-७५ १२. वही, पृ. ७५ १३. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, ४.१.६२६ १४. उत्तरपुराण (गुणभद्रकृत), दिल्ली १९५४, ५७.९३ १५. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, १. ६. ३३८-३९, जैन रूपमण्डन पृ. ७३ १६. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, १.६. ३३८ १७. वही, १. ६. ३३८-५७; जैन रूपमण्डन, पृ. ७४ १८. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, ४. १. ६२४-२५
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