Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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मूर्त अंकनों में जिनेतर शलाकापुरुषों के जीवनदृश्य
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चरित के कुछ अन्य प्रसंग भी उत्कीर्ण हैं । ३२ यद्यपि जैन परम्परा में समुद्र मन्थन का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है, तथापि प्रासंगिक सन्दर्भों में तुलनात्मक उल्लेख अवश्य प्राप्त होता है । भरत और बाहुबली के युद्ध के समय भरत की भुजा पर बँधी शृंखला को खींचते हुए सैनिकों की तुलना समुद्र मन्थन में व्यस्त देवों और दैत्यों से की गई है । शृंखला को वासुकी सर्प की उपमा दी गयी है, जो मन्थन के समय रस्सी का कार्य कर रहा था तथा भरत की भुजा की तुलना मथानी रूप मन्दर पर्वत से की गई है। मन्थन के समय समुद्र से आनेवाली मधुर ध्वनि के भी संकेत मिलते हैं । समुद्र मन्थन से विष ३५ प्राप्त होने के साथ-साथ कुछ अन्य रत्नों के प्राप्त होने के भी संकेत प्राप्त होते हैं । मरुदेवी (ऋषभनाथ की माता) द्वारा स्वप्न में देखे गये स्वर्णकलश की समुद्र से उद्भूत अमृत कलश से उपमा दी गई है। राजा वज्रसेन द्वारा अपनी पुत्री श्रीमती का विवाह राजकुमार वज्रजंघ के साथ किये जाने की तुलना समुद्र द्वारा लक्ष्मी को विष्णु को दिये जाने से की गई है। यह उल्लेख समुद्र-मन्थन से उद्भूत लक्ष्मी को विष्णु द्वारा पत्नी रूप में स्वीकार किये जाने की कथा की ओर संकेत करता है । ३८
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दृश्य में नागराज वासुकी को रस्सी और मन्दराचल पर्वत को मथानी बनाकर देवताओं और दैत्यों को समुद्र मथते निरूपित किया गया है। आगे एक पंक्ति में मन्थन
उद्भूत रत्नों को दिखाया गया है। सर्वप्रथम चतुर्भुजा लक्ष्मी को बैठी मुद्रा में दिखाया गया है, जिनके ऊर्ध्व करों में पद्म है, जबकि अंधःकर ध्यानमुद्रा में अंक में अवस्थित हैं। आगे वृषभ, अश्व और एक हंस को चोंच में पद्मनाल लिये निरूपित किया गया है । आगे एक पुरुषाकृति बनी है, जो सम्भवतः धन्वन्तरि ( वैद्य) की है । आगे नवनिधि के सूचक ९ वृत्त बने हैं ।
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• कृष्णचरित के अंकन में कृष्ण को माता की गोद में बैठे दिखाया गया है । वसुदेव और देवकी की वार्तालाप - मुद्रा में आकृतियाँ भी उकेरी गई हैं। कृष्ण सम्भवत: तृषावर्त का पैर पटकते दिखाये गये हैं । कन्दुक-क्रीड़ा का भी दृश्य अंकित है । कालियामर्दन के अंकन में नाग-नागिन का उत्कीर्णन है । पूर्व की ओर तीन अनुचरों से वेष्टित शिबिका में बैठी एक आकृति दिखायी गयी है, जो सम्भवतः मल्लयुद्ध में भाग लेने के लिए मथुरा जाते हुए कृष्ण की आकृति है ।
लूणवसही के वितान तथा रंगमण्डप से सटे दक्षिणी भाग के छज्जों पर कृष्णचरित के कई प्रसंग उत्कीर्ण हैं। यथा- कृष्णजन्म, वासुदेव द्वारा कृष्ण को गोकुल ले जाना, कृष्ण की बाललीला एवं राक्षसों के वध के प्रसंग । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख मिलता है कि वसुदेव और देवकी के विवाह के उपलक्ष्य में कंस ने एक उत्सव का आयोजन किया था । उत्सव के मध्य में ही कंस के अनुज अतिमुक्त, जिन्होंने दीक्षा ग्रहण कर ली
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