Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 8
चक्षु-इन्द्रिय से जो दर्शन होता है, वह चक्षुदर्शन है। चक्षु के सिवाय अन्य इन्द्रियों से जो दर्शन होता है, वह अचक्षुदर्शन है। अवधिज्ञान के पहले जो दर्शन होता है, वह अवधिदर्शन है और केवलज्ञान के साथ जो दर्शन होता है, वह केवलदर्शन है। आचार्य कुन्दकुन्द ने दर्शनोपयोग के भेद करते हुए कहा है:
दंसणभवि चक्खुजुदं अचक्खुजुदमवि य ओहिणा सहियं । अणिधणमणंत विसयं केवलियं चावि पण्णत्तं ॥
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आत्मतत्त्व (जीवतत्त्व) के भेद :
आचार्य उमास्वाति ने बताया है कि जीव मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं—- संसारी जीव और मुक्त जीव ‘संसारिणो मुक्ताश्च' । १६ जो संसार में भ्रमण करता है, जीवन-मरण के चक्र में है तथा जो कर्म से बँधा है, वह संसारी जीव है। जो जीव कर्मबन्ध से मुक्त है, जीवन-मरण के चक्र रहित है अर्थात् जो संसार में भ्रमण नहीं करता है और न जन्म लेता है, वह मुक्त जीव है ।
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समनस्क और अमनस्क, संसारी जीव का दो भेद कहा गया है 'समनस्काऽमनस्काः ' जिसमें उचित - अनुचित भेद करने की शक्ति या क्षमता हो, वह समनस्क है, अर्थात् जिसमें ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता हो और उपदेश देने की शक्ति हो अथवा जो मन से युक्त हो वह समनस्क है, वह विवेकी है तथा जो अच्छे-बुरे को समझने में सक्षम नहीं है, जो मन से रहित है, वह अमनस्क कहलाता है ।
त्रस
संसारी जीव दूसरे दृष्टि से दो प्रकार के होते है : 'संसारिणस्त्रसस्थावरा: १८ और स्थावर ये संसारी जीवों के दो भेद हैं ।
(१) त्रस : जिसमें गति हो, वह त्रस है । यह अनेक इन्द्रियों से युक्त है । यह ऐसा जीव है, जो गति करता है और एक से अधिक इन्द्रियों से युक्त होता है। त्रस जीव का भेद करते हुए सूत्रकार ने कहा है: 'तेजोवायू द्वीन्द्रियादयश्च त्रसाः । ९ अर्थात् तेज, वायु तथा दो से पाँच इन्द्रिय तक ।
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(२) स्थावर : यह जीव स्थायी रहता है । चल-फिर नहीं सकता है । यह एकेन्द्रिय से युक्त होता है । वह एकेन्द्रिय, अर्थात् स्पर्शेन्द्रिय से युक्त होता है। यह जीव गतिहीन होता है। जब कोई जीव एकेन्द्रिय से युक्त होगा, तो वह स्पर्शेन्द्रिय से ही युक्त होगा । यह एक सिद्धान्त भी है। स्थावर जीव का भेद करते हुए सूत्रकार ने कहा है ० ' पृथिव्याम्बुवनस्पतयः स्थावराः' । अर्थात् स्थावर जीव के पृथ्वीकाय, जलकाय और वनस्पतिकाय, ये तीन भेद हैं। जो पृथ्वी से बना है, वह पृथ्वी स्थावर है । जो जल से बना है, वह जल स्थावर जीव है और इसी प्रकार जो वनस्पति से बना है, वह वनस्पति स्थावर जीव है ।
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