Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Rescarch Bulletin No. 8
का अन्त मोक्षप्राप्त करने पर ही होता है। मोक्षप्राप्ति के पहले तक संसारी आत्मा, कर्मफलानुसार विभिन्न पर्यायों में जन्म लेती है। अतः पुनर्जन्म आत्मा की संसारी अवस्था का प्रतीक है और मोक्ष उसकी मुक्तावस्था का। वस्तुतः, भारतीय दर्शन में 'आत्मतत्त्व' की स्वतन्त्र सत्ता स्वीकार करना ही समीचीन है। यह मान्यता समस्त भारतीय संस्कृति में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रतिष्ठित है।
सन्दर्भ- स्रोत :
१. सूत्रकृतांग सूत्र, प्रथम अध्याय के प्रथम उद्देशक, गाथा-संख्या ७ २. वही, गाथा सं. ८ ३. श्रीमद्भगवद्गीता, द्वि. अ, २० ४. श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय २, का श्लोक २२ ५. वही, श्लोक २३ ६. वही, श्लोक २४ ७. तत्त्वार्थसूत्र : (उमास्वाति), सूत्र-संख्या १. ४, विवेचक : सुखलाल संघवी। ८. पंचास्तिकाय : आचार्य कुन्दकुन्द, गाथा-सं. १०८, प्रथम श्रुतस्कन्ध । ९. समयसार : जीवाजीवाधिकार, गाथा-सं.३८ और ४८ १०. तत्त्वार्थ सूत्र, द्वितीय अध्याय का प्रथम सूत्र ११. तत्त्वार्थसूत्र, सूत्रसंख्या २. ८ १२. तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय २. ९ १३. पंचास्तिकाय, प्रथम श्रुतस्कन्ध, गाथा-संख्या ४० १४. पंचास्तिकाय, प्रथम श्रुतस्कन्ध, गाथा-संख्या ४१ १५. वही, गाथा-सं. ४२ १६. तत्त्वार्थसूत्र, २.१० १७. तत्वार्थसूत्र, २.११ १८. वही, २.१२ १९. वही, २.१४ २०. वही, २.१३ २१. वही, २.३७
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