Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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जैन पुरातत्त्व-सन्दर्भित विदेह और मिथिला
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बिहार से प्राप्त जैन प्रतिमाओं में लोहानीपुर से मिली तीर्थंकर की मौर्यकालीन खण्डित प्रतिमा (भारतीय कला को बिहार की देन : डॉ. वी. पी. सिन्हा) सर्वप्राचीन मानी जाती है। तीर्थंकर की इस प्रतिमा के सिर, हाथ तथा जाँघ से नीचे के पैर खण्डित हैं। मूर्ति पर उत्तम चमकीली पालिश है। तंग वक्षस्थल, चौरस पीठ, क्षीण काया आदि जैन परम्परा एवं कायोत्सर्ग-भंगिमा के अनुकूल हैं। आरम्भिक तीर्थंकरों की कायोत्सर्गमूर्तियाँ प्राय: नंगी मिलती हैं। चौसा से प्राप्त ऋषभदेव (आदिनाथ) की कांस्यमूर्ति (पालकालीन) कायोत्सर्ग-स्थिति में नंगी बनी है। सिर के बाल तरंगवत् लकीरों में चित्रित हैं तथा मुखाकृति कठोर है। किन्तु ऋषभनाथ की महेत (गोंडा) से प्राप्त प्रस्तर-मूर्तियाँ योगासीन स्थिति में बनी हैं। पद्मासन के नीचे सिंह और वृषभ बने हैं। हृदयस्थल पर धर्मचक्र बना है। ऋषभनाथ के दोनों ओर पार्श्व-देवताओं की तरह दो अनुचर खड़े हैं।
चन्दनकियारी से मिली पार्श्वनाथ की कांस्यमूर्ति (कायोत्सर्ग, पालकालीन) उल्लेखनीय महत्त्व की है। तीर्थंकर नेमिनाथ की प्राचीन प्रस्तर-प्रतिमा ग्वालियर से मिली है । नेमिनाथ पद्मासन पर योगासीन स्थिति में हैं। आसन के नीचे सिंह, पार्थों में पार्श्वदेव, हृदयस्थल पर धर्मचक्र, मस्तक छत्र-मण्डित । यह प्रतिमा शिल्प की दृष्टि से प्रतीकात्मक है। इस इक्कीसवें तीर्थंकर का जन्म प्राचीन विदेह की राजधानी मिथिलापुरी में हुआ था। जैन तीर्थंकरों की परम्परा में प्रतिष्ठित उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ का भी जन्म मिथिलापुरी में हुआ था। जिनप्रभसूरि ने 'विविधतीर्थकल्प' में मिथिला में जनमें इन दो जिनों के पाद-पद्मों में अपना प्रणाम (मिथिलातीर्थकल्प) निवेदित किया है : ..... नईओ अमहुरोदगा पागयजणा वि सक्कयभासविसारया अणेगसत्थपसत्थअइनिउणा य जणा। तत्थ रिद्धित्थमिअसमिद्धा मिहिला (पाठान्तर : महिला = मिथिला) नाम नगरी हुत्था। संपयं जगइ त्ति पसिद्धा...इत्थय मल्लिनाहचेईए वइरुट्टा देवी कुबेरजक्खो अ, नमिजिणचेईए गंधारीदेवी भिउडीजक्खो अ, आराहयजणाणं विग्थे अवहरंति त्ति ।. . . .
तदनुसार भारतवर्ष के पूर्व देश में विदेह-जनपद है। सम्प्रति इसे 'तिरहुत देश' कहा जाता है । यहाँ का जनसाधारण संस्कृतज्ञ तथा शास्त्रनिपुण है । यहाँ अनेक ऋद्धियों से समृद्ध मिथिला नाम की नगरी थी। सम्प्रति यह ‘जगइ' (जगती) के नाम से प्रसिद्ध है।. . . . यहाँ जैनों के मल्लिनाथ चैत्य में वैरोट्या देवी और कुबेर यक्ष तथा नेमिजैन चैत्य में गान्धारी देवी तथा भृकुटीयक्ष आराधकों के विघ्नों का हरण करते हैं।' ( मिथिलापुरी का अभिज्ञान : प्रो. उपेन्द्र झा)
मिथिलापुरी में उद्भूत जैन तीर्थंकर मल्लिनाथ की माँ प्रभावती तथा पिता कुम्भराज और नेमिनाथ की माँ वप्पादेवी (विप्रा) तथा पिता विजयनृप थे। 'तिलोयपण्णत्ति' में मल्लिनाथ और नेमिनाथ के जन्म, दीक्षा और वैराग्य-प्राप्ति की विस्तृत जानकारियाँ
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