Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Insitute Research Bulletin No. 8
जंगल में चला गया। कुछ समय पश्चात् मरुभूति कमठ के पास क्षमा याचना के लिए गया। उसे देखकर कमठ अत्यन्त क्रोधित हुआ और उसके मस्तक पर एक शिलाखण्ड से प्रहार किया, जिससे मरुभूति की मृत्यु हो गयी। अपने इस कुकृत्य के कारण कमठ को सदैव के लिए नरकगामी होना पड़ा।
दो आयतों में विभक्त दृश्यावली के बाहरी आयत में दक्षिण की ओर वार्तालाप की मुद्रा में उत्कीर्ण अरविन्द की आकृति के सामने मरुभूति एवं कमठ की आकृतियाँ बैठी हैं। आगे कमठ को एक शिलाखण्ड लिए दिखाया गया है। कमठ के सामने मरुभूति नमस्कार-मुद्रा में खड़े हैं तथा कमठ उनपर शिलाखण्ड से प्रहार करने को उद्यत है। आगे अरविन्द की साधुरूप में दो आकृतियाँ हैं जिसके नीचे ‘अरविन्द मुनि' लिखा है।
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख है कि दूसरे भव में मरुभूति का जीव गज तथा कमठ का जीव कुक्कुट-सर्प के रूप में उत्पन्न हुआ। गज अरविन्द मुनि के उपदेशों को सुनकर यति धर्म का पालन करने लगा। एक दिन कुक्कुट सर्प ने पूर्वजन्म के वैर के कारण गज को डस लिया जिससे गज की मृत्यु हो गयी। तीसरे भव में मरुभूति का जीव देवता तथा कमठ का जीव नरकवासी हुआ, जहाँ उसे विभिन्न यातनाएँ भोगनी पड़ी । २०
__ दृश्य में एक वृक्ष के समीप उत्कीर्ण अरविन्द मुनि तथा गज की आकृतियों के नीचे 'मरुभूति जीव' लिखा है। समीप ही एक दूसरी गजाकृति की पीठ पर कुक्कुटसर्प को दंश करते दिखाया गया है। आगे कमठ के जीव को नरक में दी जाने वाली यातनाओं का अंकन है जिसमें मध्य में बैठी आकृति के मस्तक पर दो पार्श्ववर्ती खड़ी आकृतियाँ किसी धारदार वस्तु से प्रहार कर रही है।
चौथे भव में मरुभूति का जीव किरणवेग नामक राजकुमार तथा कमठ का जीव विकराल सर्प के रूप में उत्पन्न हुआ। पूर्वभव के वैर के कारण सर्प ने दंश कर किरणवेग के प्राण ले लिए। पांचवें भव में मरुभूति देवता तथा कमठ नरकवासी हुआ । छठे भव में मरुभूति वज्रनाम नामक राजकुमार तथा कमठ भिल्ल कुरंगक के रूप में उत्पन्न हुआ। पूर्वभवों के वैर के कारण कुरंगक ने बाण के प्रहार से वज्रनाभ का वध कर डाला।
शिल्पांकन में वार्तालाप की मुद्रा में उत्कीर्ण किरणवेग की आकृति के समीप दो अन्य आकृतियाँ बैठी हैं जिनके नीचे 'किरणवेग राजा' लिखा है। आगे कायोत्सर्ग में उत्कीर्ण किरणवेग के शरीर से एक सर्प लिपटा हुआ दिखाया गया है। पूर्व की ओर वज्रनाभ की बैठी आकृति के नीचे 'वज्रनाभ' लिखा है। आगे उन्हें मुनिरूप में दिखाया गया है और समीप ही शरसंधान की मुद्रा में कुरंगल की आकृति भी बनी है। आगे वज्रनाभ का मृत शरीर दिखाया गया है।
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