Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 8
दिखाया गया है। गजारूढ़ एक योद्धा ‘सोमजस' (राजकुमार) तथा दूसरा ‘मन्त्री बहुलमति' है। शिबिका में बैठी स्त्री-आकृतियों के नीचे 'अन्तःपुर' अंकित है। शिबिका में बैठी एक अन्य आकृति के नीचे 'सुभद्रा स्त्री-रत्न' (बाहुबली की पत्नी) लिखा है। आगे अश्वों गजों और पदाति-सेनाओं की कतारें उत्कीर्ण हैं । योद्धा समान वस्त्र धारण किये हुए व्यक्ति की पहचान सम्भव नहीं है; क्योंकि नीचे लिखा अक्षर मिट गया है। सम्भवतः यह बाहुबली की आकृति है।
आगे युद्धभूमि का अंकन है, जिसमें एक मृत योद्धा के नीचे ‘अनिलवेगः' अंकित है। अश्वारूढ़ योद्धा के नीचे 'सेनापति सिंहरथ' उत्कीर्ण है। रथारूढ़ योद्धा के नीचे 'रथारूढ़ो भरतेश्वरस्य विद्याधर अनिलवेगः' लिखा है। विमान पर आरूढ़ एक व्यक्ति के नीचे 'अनिलवेगः' उत्कीर्ण है। आगे उत्कीर्ण एक गज के नीचे ‘पट्टहस्ति विजयगिरि' अंकित है। गजारूढ़ योद्धा के नीचे ‘आदित्यजय यशः' उत्कीर्ण है। एक अश्वारोही के नीचे ‘सवेगदूतः' अभिलिखित है।
आगे दो पट्टों पर भरत और बाहुबली के मध्य होनेवाले द्वन्द्वयुद्ध का विस्तृत अंकन हुआ है। दोनों के मध्य होनेवाले दृष्टियुद्ध, वाग्युद्ध, मुष्टियुद्ध एवं चक्रयुद्ध से सम्बद्ध आकृतियों के नीचे क्रमशः ‘भरतेश्वर बाहुबली दृष्टियुद्ध', 'भरतेश्वर बाहुबली वाग्युद्ध', 'भरतेश्वर बाहुबली बाहुयुद्ध', 'भरतेश्वर बाहुबली मुष्टियुद्ध', 'भरतेश्वर बाहुबली दण्डयुद्ध', 'भरतेश्वर बाहुबली चक्रयुद्ध' उत्कीर्ण है। आगे कायोत्सर्ग-मुद्रा में बाहुबली की खड़ी आकृति है, जिसके पैरों पर लतावल्लरियाँ लिपटी दिखाई गई हैं। नीचे 'काउसग्गस्थितश्च बाहुबली' उत्कीर्ण है। आगे बाहुबली को केवल ज्ञान प्राप्त करने की अवस्था में दिखाया गया है। नीचे 'समजात केवलज्ञाने बाहुबली' लिखा है। बाहुबली के दोनों ओर उनकी बहिनों ब्राह्मी और सुन्दरी की आकृतियाँ हैं, जो उनकी तपस्या के समय प्रतिबोध कराने के आशय से उनके पास गई थीं। नीचे 'वर्तिनी बाम्मी तथा सुन्दरी' उत्कीर्ण है।
कोने में ऋषभनाथ का समवसरण उत्कीर्ण है। समवसरण के दूसरी ओर भरत के दीक्षा-पूर्व का दृश्य है। दृश्य के नीचे 'अंगुलिकस्थाननिरीकस्थमाणभरतेश्वरस्य समजातकेवलज्ञान अयम् भरतेश्वरः' लिखा है। आगे एक देवी को भरत को ओधो (रजोहरण) देते हुए प्रदर्शित किया गया है, जो भरत के मुनिरूप को अभिव्यक्त करता है। नीचे ‘भरतेश्वरस्य समजात केवलज्ञाने रजोहरण समर्पणे सानिध्यदेवता समायाता रजोहरण सानिध्यदेवता' अभिलिखित है । २१
प्रथम वासुदेव त्रिपृष्ठ के जीवन को कुछ प्रमुख घटनाओं का अंकन महावीर के जीवनदृश्यों के अंकन के सन्दर्भ में कुम्भरिया के शान्तिनाथ एवं महावीर-मन्दिरों तथा
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