Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में वर्णित तीर्थंकर
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और नाभिराय को वार्तालाप की मुद्रा में तथा सेविकाओं से वेष्टित मरुदेवी को शय्या पर लेटे दिखाया गया है। आकृतियों के नीचे उनके नाम भी उत्कीर्ण हैं। मरुदेवी की लेटी आकृति के समीप ही १४ मांगलिक स्वप्न (गज, वृषभ, सिंह, अभिषेक, लक्ष्मी, ध्वज, अर्धचन्द्र, पुष्पहार, पूर्णम्भ, सूर्य, देवविमान, रत्नराशि, पद्म-सरोवर, क्षीर-समुद्र तथा पात्र में निर्धूम अग्नि) भी उकेरे गये हैं।
उत्तरी पट्टिका में पुन: मरुदेवी एवं नाभिराय की आकृतियाँ बनी हैं। आगे शय्या पर (शिशुरहित) लेटी मरुदेवी के समक्ष चार वृषभ और एक अश्वारोही आकृतियाँ बनी हैं, जो ऋषभनाथ के च्यवन का अंकन है। अश्वारोही आकृति वज्रनाभ (ऋषभनाथ का पूर्वभव) की है। आगे नाभिराय एवं विभिन्न इन्द्रों (जैन परम्परा में ६४ इन्द्रों की कल्पना है) की आकृतियाँ बनी हैं, जो मरुदेवी के स्वप्नों का फल बताने के आशय से उपस्थित हैं। इसका त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में भी उल्लेख है। दक्षिण की ओर ऋषभनाथ के राज्यारोहण और विवाह के दृश्य हैं, जिनमें उनके राज्यारोहण एवं विवाह के पूर्व स्नान का दृश्यांकन है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख मिलता है कि विवाह के पूर्व इन्द्र ने ऋषभनाथ को स्नान कराया था तथा राज्यारोहण से पूर्व जल से उनकी शुद्धि की
थी।४
दूसरे आयत में (पूर्व) ऋषभनाथ राजा के रूप में देवों एवं सेवकों के मध्य बैठे और मनुष्य जाति को विभिन्न कलाओं का ज्ञान दे रहे हैं, जो त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के विवरण पर आधारित है। ग्रन्थ में उल्लेख है कि ऋषभनाथ ने ही मनुष्य जाति को सर्वप्रथम ७२ कलाओं का ज्ञान दिया था। दृश्य में ऋषभनाथ को रथ पर बैठे तथा हाथ में पात्र लिये दिखाया गया है । जो मृद्भाण्ड निर्माण एवं युद्धकला की शिक्षाओं का द्योतक है।
उत्तर की ओर ऋषभनाथ की दीक्षा के दृश्य हैं। सर्वप्रथम ऋषभनाथ के गृहत्याग का अंकन है, जिसमें ऋषभनाथ एवं लोकान्तिक देव को दिखाया गया है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में सन्दर्भ है कि प्रत्येक तीर्थंकर के गृहत्याग के समय लोकान्तिक देव प्रतिबोध के उद्देश्य से उपस्थित होते हैं। आगे पद्मासन में बैठी, केश-लुंचन करती ऋषभनाथ की पाँच आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं। पांचवी आकृति के समीप इन्द्र खड़े हैं, जो ऋषभनाथ से एक मुष्टि केश सिर पर ही रहने देने का आग्रह कर रहे हैं। इन्द्र की उपस्थिति त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित के विवरण के अनुरूप है। यह दृश्य ऋषभनाथ द्वारा चतुर्मुष्टिक केशलुंचन तथा एक मुष्टि केश सिर पर ही छोड़ देने का भान कराता है। आगे कायोत्सर्ग-मुद्रा में तपस्यारत ऋषभनाथ के दोनों पार्थों में उनके पौत्र नमि एवं विनमि की खड्गधारी आकृतियाँ हैं। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख है कि ऋषभनाथ की तपस्या के समय उनके पौत्र नमि और विनमि राज्यलक्ष्मी प्राप्त करने की इच्छा से काफी समय तक उनके पास खड़े रहे।
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