Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 279
________________ 250 Vaishali Institute Research Bulletin No. 8 छोड़कर दूसरे शरीर में जानेवाले जीव के दो भेद माने गये है। एक वह जीव, जो पुनर्जन्म की अवस्था में स्थूल या सूक्ष्म शरीर को सदा के लिए छोड़ देता है । इस जीव को मुक्त जीव भी कहते हैं। दूसरे वह जीव जो पहलेवाले स्थूल शरीर को छोड़कर दूसरे नये स्थूल शरीर में प्रविष्ट करता है, जिसे हम संसारी जीव कहते हैं। ____ 'अविग्रहा जीवस्य २२इस सूत्र में मुक्त जीव की बात कही गई है। मुक्त जीव की गति सदा सीधी रेखा में होती है, लेकिन संसारी जीवों के साथ कोई इस तरह का नियम नहीं है। वह अपने कर्म की भिन्नता के अनुसार कभी टेढ़ी तो कभी सीधी गति से चलायमान होती है। आत्मतत्त्व की विशेषता : आचार्य कुन्दकुन्द ने आत्मा को एक अस्तिकाय द्रव्य के रूप में स्वीकार किया है। इसके गुणों का विवेचन करते हुए निम्नांकित विशेषताओं का उल्लेख किया है: जीवोत्ति हवदि चेदा उवओगविसेसिदो पहू कत्ता।। भोत्ता च देहमेत्तो ण हि मुत्तो कम्मसंजुत्तो॥२३ (१) आत्मा का अस्तित्व है : जो लोग जीव के अस्तित्व में विश्वास करते हैं, उनके मत के निराकरण करने के लिए कहा गया है कि जीव का अस्तित्व है। क्योंकि, जीव, द्रव्य और भावप्राणों के द्वारा जीवित रहता था और जीवित रहेगा। ये प्राण दस प्रकार के होते हैं: मनोबल, वचनबल, कायबल, पाँच इन्द्रियाँ, आयु और उच्छ्वास। ये दशों प्राणमुक्त जीव के भी होते हैं। लेकिन उनके सिर्फ भावप्राण ही होते हैं। इसी कारण वे भी जीव कहे गये हैं। (२) आत्मा चेतना-स्वरूप है : चेतना, आत्मा का एक विशेष गुण है। कोई भी जीव ऐसा नहीं है, जो चेतन-स्वरूप न हो। कर्म के अनुसार यह चेतना तीन प्रकार की होती है-कर्म-चेतना, कर्मफल-चेतना और ज्ञान-चेतना। जो जीव सिर्फ कर्मफलों का अनुभव करता है, ऐसे स्थावर काय को जीवों के कर्म-चेतना होती है। दूसरी राशि में वे जीव आते हैं, जो कर्म के फलों का अनुभव करते हुए इष्ट-अनिष्ट कार्य को भी करते हैं, वेही कर्मफल-चेतना कहलाते हैं । द्वीन्द्रिय से लेकर समस्त संसारी जीवों में यह चेतना विशेष रूप से पाई जाती है। ज्ञान चेतना, मुक्त जीवों में पाये जाते हैं, क्योंकि वे सिर्फ ज्ञान का ही अनुभव करते हैं । चेतना गुण के द्वारा कुन्दकुन्दाचार्य ने बताया है कि आत्मा जड़-स्वरूप नहीं है और न अचेतन है, बल्कि आत्मा का भिन्न गुण है। (३) आत्मा उपयोग-युक्त है : आत्मा उपयोग-स्वरूप कहा गया है । उपयोग, चेतना से इस अर्थ में भिन्न है कि चेतना का वह अनुयायी है। दूसरे शब्दों में उपयोग चेतना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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