Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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मूर्त अंकनों में जिनेतर शलाकापुरुषों के
जीवनदृश्य
डॉ. शुभा पाठक शलाकापुरुष का अर्थ है देव-समान श्रेष्ठ पुरुष ।' जैनधर्म के श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों ही सम्प्रदायों में ६३ शलाकापुरुषों की कल्पना की गई है, जिनमें २४ तीर्थंकरों के अतिरिक्त ३९ अन्य शलाकापुरुषों को सम्मिलित किया गया है। ६३ शलाकापुरुषों की पूर्ण सूची सर्वप्रथम विमलसूरि के पउमचरिय (४०० ई.) में प्राप्त होती है, जिसमें २४ तीर्थंकरों के अतिरिक्त १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव एवं ९ प्रतिवासुदेव सम्मिलित थे। आचार्य हेमचन्द्र के ग्रन्थ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (११६०-११७२ई) में प्राप्त ६३ शलाकापुरुषों की सूची में २४ तीर्थंकरों के अतिरिक्त १२ चक्रवर्तियों के रूप में भरत, सगर, मघवन, सनत्कुमार, शान्ति, कुन्थु, अर, सुभूम, पद्म, हरिषेण, जय और ब्रह्मदत्त, ९ बलदेवों के रूप में अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनन्द, नन्दन, पद्म (राम) और राम (बलराम), ९ वासुदेवों के रूप में त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषपुण्डरीक, दत्त, नारायण (लक्ष्मण) और कृष्ण तथा ९ प्रतिवासुदेवों के रूप में अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मधु, निशुम्भ, बलि, प्रह्लाद, लंकेश (रावण) और मगधेश्वर (कंस) का उल्लेख किया गया है।
बारह चक्रवर्तियों की सूची में प्राप्त शान्ति, कुन्थु और अरनाथ जैन परम्परा के क्रमश: १६, १७वें और १८वें तीर्थंकर भी हैं, जिन्हें एक ही भव में तीर्थंकर और चक्रवर्ती दोनों ही पद प्राप्त हुए । चक्रवर्ती को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्वामी एवं विश्वविजेता माना गया है। ये स्वर्ण वर्ण एवं काश्यप गोत्र के बताये गये हैं। जैन परम्परा में ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक तीर्थंकर की माता गर्भ धारण की रात्रि में कुछ शुभ स्वप्न के दर्शन करती थीं। श्वेताम्बर-परम्परा में इन स्वप्नों की संख्या १४ बताई गई है, जबकि दिगम्बर-परम्परा में इनकी संख्या १६ है। श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार १४ शुभस्वप्न क्रमशः गज, वृषभ, सिंह, गजलक्ष्मी, पुष्पहार, चन्द्रमा, सूर्य, ध्वजदण्ड, पूर्णकुम्भ, पद्मसरोवर, क्षीरसमुद्र, देवविमान, रत्नराशि और निर्धूम अग्नि हैं। दिगम्बर-परम्परा में मत्स्ययुगल
यू.जी.सी. रिसर्च एसोसियेट,प्रा. भा. इ. सं. एवं पुरातत्त्व-विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, ४७ए रवीन्द्रपुरी, लेन.नं.५, वाराणसी २२१००५.
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