Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No. 8
देनेवाले होते हैं । अतः कामनाओं से जो व्यक्ति मुक्त नहीं है, वह सर्वदा अतृप्त रहकर संसार-चक्र में परिभ्रमण करता रहता है तथा जन्म-जन्मान्तर दुःख झेलता 1 'चित्तसंभूइज्ज' अध्ययन में सभी प्रकार के काम-भोगों को दुःखद मानकर उनके प्रति आसक्ति के त्याग का आह्वान किया गया है ।
सव्वं विलवियं गीयं, सव्वं नट्टं विडम्बियं । सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा । "
चित्त नामक मुनि ने काम - गुणों में आसक्त सम्भूत नामक राजा को उपदेश देते हुए कहा कि जो सुख विरक्ति में है, शील में है, सद्गुणों में है, वह काम - गुणों में नहीं है । न तं सुहं कामगुणेसु रायं, विरत्तकामाण तवोधणाणं ।'
कामभोग तो शल्य के समान हैं, विषतुल्य हैं, आशीविष सर्प के सदृश हैं । सव्वं कामा विषं कामा, कामा आसीविसोवमा । ९
पुनः कामभोग कुशाग्र पर स्थित जलबिन्दु के समान हैं, अर्थात् क्षणभंगुर हैं । कुसग्गमेत्ता इमे कामा ।'
अतः मानवीय कामभोग में आसक्त व्यक्ति शाश्वत सुखों से वंचित रहता है । अतएव, इन्हें सावद्य मानकर उनमें लिप्त नहीं होना ही श्रेयष्कर है। I
सव्वे कामजासु पासमाणो न लिप्पई ताई । ११
उत्तराध्ययन सूत्र के 'उसुयारिज्जं' अध्ययन में कामभोगों से उसी प्रकार शंकित रहने का निर्देश है, जिस प्रकार गरुड़ के समक्ष सर्प शंकित होकर चलता है 1 उरगो सुवण्णपासे व संकमाणो तणुं चरे । १२
संन्यास का प्रमुख शर्त कामवासना का त्याग है । उत्तराध्ययनसूत्र के 'सभिक्खुयं' अध्ययन में वासना के संकल्प का छेदन करनेवाले ( नियाणछिन्ने), कामभोगों की अभिलाषा का परित्याग करनेवाले (अकामकामे) को ही सच्चे संन्यासी की संज्ञा दी गई है। त्याग ही मानव-जीवन को सच्चा सुख प्रदान कर सकता है । उत्तराध्ययनसूत्र के 'नमिपव्वज्जा' अध्ययन की यह स्पष्टोक्ति है :
सुहं वसामो जीवामो जेसि मो नत्थि किंचण । १३
वे लोग जिनके पास अपना कुछ भी नहीं है । सुखपूर्वक रहते हैं तथा सुखपूर्वक जीते हैं । 'उरब्भिज्जं' अध्ययन का भी उद्देश्य कामभोगों से आसक्ति के त्याग का संदेश देना ही है ।
अतएव संन्यास का आधार अनासक्ति है । जो विषय-वासना में आसक्त होता है, वह कभी दुःखों से मुक्त नहीं होता । मानवीय कामभोगों में आसक्त व्यक्ति अलौकिक
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