Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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अनेकान्तवाद और अहिंसा : एक शास्त्रीय
_परिशीलन
डॉ. योगेन्द्र प्रसाद सिंह सभी भारतीय आस्तिक धर्मों का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष ही है। धर्म को विचार और आचार का समन्वय समझा जाना चाहिए। धर्म की परिभाषा आचार्यों ने अपनी-अपनी समझ, विश्वास, आस्था और तर्क के आधार पर निर्मित की है। किसी ने 'यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः', कहा है, अर्थात् जिससे इहलौकिक अभ्युदय (उन्नति) और पारलौकिक कल्याण, अर्थात् सांसारिक उन्नति और मुक्ति प्राप्त हो, उसे धर्म कहते हैं। तो दूसरे ने 'चोदनालक्षणो धर्मः' अर्थात् जिसका लक्षण यह है कि वह व्यक्ति को सत्कर्म की ओर प्रेरित करे । और अन्य ‘धृतिः (धीरज) क्षमा, दम (अपनी वासनाओं को उन्मार्ग की ओर जाने से रोकना) अस्तेय, शौच (बाह्य और आन्तरिक पवित्रता), इन्द्रिय-निग्रह, मन-सहित कर्मेन्द्रियों और वाणी के द्वारा सत्य-व्यवहार और अक्रोध ये दस लक्षण धर्म के कहे गये हैं। जैन-चारित्र में पुराने कर्मों के नाश और नये कर्मों को रोकने के लिए जिन दस धर्मों के पालन पर जोर दिया गया है, वे ऊपर के ही दस धर्म हैं। फिर वैदिक आचार्य की मान्यता है कि "श्रुतिः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः । एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद् धर्मस्य लक्षणम् ॥” अर्थात् वेद, स्मृति, सदाचार और अपनी आत्मा को प्रिय लगनेवाली वस्तु को धर्म का लक्षण कहां जा सकता है।
धर्म की विवेचना करते हुए भी कहा गया है कि 'धारणाद्धर्ममित्याहुर्धर्मो धारयति प्रजाः।' जिसे धारण किया जाय अथवा जो धारण करे, वही धर्म है। धर्म ही प्रजा (लोक) को धारण करता है। अर्थात् धर्म पर ही प्रजा (लोक) का अस्तित्व निर्भर करता है। ___जैनधर्म के मोक्षमार्ग के उपायों के रूप में जैन दार्शनिक हमास्वामी ने 'तत्त्वार्थसूत्र' में 'सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः' कहा है। अर्थात् सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान
और सम्यक् चारित्र ही मोक्षमार्ग हैं। जब किसी व्यक्ति में ये तीनों तत्त्व एकत्र होते हैं, अर्थात् सम्मिलित होते हैं, तब उसे मोक्ष मिलता है। वैदिक दर्शन में किसी व्यक्ति के लिए चार पुरुषार्थ कहे गये हैं, जिनमें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों को किसी पुरुष के जीवन को क्रमिक उन्नति के द्वारा सार्थक बनाया जा सकता है । जैन दर्शन के सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र की गिनती त्रिरत्न में की गई है।
* मोरसण्ड, रुन्नी सैदपुर, सीतामढ़ी (बिहार)
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