Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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जैनधर्म एवं छोटानागपुर
आदिवासी भगवान् महावीर की सादगी एवं सज्जनता से प्रभावित हुए और उनमें अनेक आदिवासियों ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया। इस ‘साफा' राज्य या प्रदेश की पहचान इस जिले के साथ किया जाता है।
पालमा से हमें अनेक जैन कलाकृतियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनमें तीन प्रस्तर-मूर्तियाँ पटना संग्रहालय में संरक्षित हैं। इनमें एक अजितनाथ की स्थानक-प्रतिमा है। उनका लांछन हाथी उनके पैर के निकट दिखलाया गया है। उनके दोनों ओर चँवरधारी यक्षों की प्रतिमाएँ देखने को मिलती हैं, जो थोड़ा बहुत उनकी तरफ घूमे हुए हैं। यह पटना-संग्रहालय में संगृहीत पहली प्रतिमा है। एक दूसरी मूर्ति में भी अजितनाथ को कायोत्सर्ग-मुद्रा में दिखाया गया है। प्रारम्भ में इस मूर्ति की पहचान नेमिनाथ° से की गई थी, परन्तु मूर्ति के निचले भाग में अंकित हाथी यह स्पष्ट कर देता है कि ऊपर अंकित मूर्ति अजितनाथ की ही है। इस स्थान से प्राप्त तीसरी प्रतिमा शान्तिनाथ की है, जिनके साथ उनका लांछन या चिह्न मृग देखने को मिलता है। ये सभी प्रतिमाएँ लगभग ११वीं शती ई. की हैं।
मार्च, १९४७ ई. में वर्तमान धनबाद जिले के चन्दनकियारी- प्रखण्ड से हमें अष्टधातु निर्मित मूर्तियों का एक समूह प्राप्त हुआ था, जिनमें सभी मूर्तियाँ जैन धर्म की ही थीं। यह अष्टधातुसमूह आज पटना संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है। इस समूह में कुल २९ प्रतिमाएँ थीं, जिनमें २७ खड़े जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ हैं। इनमें से एक में देवी अम्बिका का एवं एक में एक मनुष्य के सिर का अलंकरण देखने को मिलता है। यह सिर भी सम्भवत: किसी जैन तीर्थंकर का है।१२ यहाँ नग्न जैन तीर्थंकरों की पहचान उनके साथ चिह्नित लांछनों के आधार पर आसानी से किया जा सकता है। इन प्रतिमाओं में सबसे अधिक प्रतिमाएँ ऋषभनाथ की हैं, जो सात मूर्तियों में अंकित हैं। महावीर एवं कुन्थुनाथ की छह-छह प्रतिमाएँ इस समूह में देखने को मिली हैं । चन्द्रप्रभ एवं पार्श्वनाथ की दो-दो प्रतिमाएँ निर्मित हैं। अजितनाथ, विमलनाथ और नेमिनाथ की एक-एक मूर्ति हमें देखने को मिलती है। एक मूर्ति में ऋषभनाथ एवं महावीर को साथ-साथ खड़ा दिखाया गया है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, एक प्रतिमा अम्बिका देवी की है एवं एक जैन तीर्थंकर का मस्तक है।
यह अष्टधातु-निर्मित मूर्तियों का समूह एक नवीन अष्टधातु-निर्माण-कला की तरफ हमारा ध्यान आकृष्ट करता है । ये सभी मूर्तियाँ नालन्दा एवं कुर्किहार से प्राप्त अष्टधातु की मूर्तियों से अलग ढंग से निर्मित हैं। जहाँ नालन्दा एवं कुर्किहार की मूर्तियाँ भीतर खोखली हैं, अलुवारा की अष्टधातु-प्रतिमाएँ पूर्णरूपेण भरी, परन्तु ऊपर से देखने में दुबली-पतली हैं। अधिकांश के सिरों के अग्रभाग पर ऊर्ण देखने को मिलता है।
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