Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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महावीर का पंचसूत्री महाव्रत और बृहदारण्यक के तीन 'द'
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कोई दिया हुआ दान न ले, तो फिर दान-क्रिया ही समाप्त हो जायेगी। अभिमानरहित श्रद्धा-प्रेम से दिया हुआ दान मानव-जीवन के लिए कल्याणकारी होता है। आज बहुत से उपेक्षित पात्र दान की अपेक्षा रखते हैं। यदि उन्हें सादर दान दिया जाय, तो मानव-जीवन की अनेक विषमताएँ, उलझनें, कठिनाइयाँ, परेशानियाँ दूर हो जायेंगी।
___ सामान्य मनुष्य के लिए प्रजापति ने 'द' का अर्थ 'दत्त' जो बतलाया है, वह किसी भी धर्म के विपरीत नहीं, अपितु अनुकूल ही है। इसमें महावीरस्वामी का पहला सूत्र 'अहिंसा' का एक अंश आ जाता है। 'अहिंसा' और 'अयाचकत्व' में उचित पात्र को देने की बात कही गई है। कुछ इसी प्रकार की बात ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र में भी कही गई है:
ॐ ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किच जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥ अर्थात्, जगत् में जो कुछ स्थावर-जंगम संसार है, वह सब ईश्वर के द्वारा आच्छादनीय है। उसके त्याग-भाव से तू अपना पालन कर; किसी के धन की इच्छा न कर । इस तरह मानव-समाज की सुन्दर व्यवस्था में उचित पात्र को दान सभी धर्मों का महत्त्वपूर्ण अंश है।
असुरों के लिए कहे गये 'द' अक्षर का अर्थ 'दयध्वम्' अर्थात् 'दया करो' है। हमारे समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो इन्द्रियासक्ति के कारण कषाय-चतुष्टय से पीड़ित होकर विषयासक्ति वश कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं। वे बड़ी से बड़ी हिंसा कर डालते हैं। शक्ति और ऐश्वर्य से मदोन्मत्त व्यक्ति अपने तामसिक अहंकार से किसी को कुछ भी नहीं समझते और व्यर्थ ही सबको पीड़ा देते हुए अपनी शक्ति और ऐश्वर्य का दुरुपयोग करते हैं। फलस्वरूप, अनेक उग्रवादी निर्दय हिंसक-वृत्तियों का उदय होता है। ऐसी वृत्तियों पर नियन्त्रण के लिए 'दयध्वम्' का 'द' महत्त्वपूर्ण है। इसमें महावीर स्वामी की अहिंसा, बुद्ध की अहिंसा, गाँधी की अहिंसा, ईसा, हजरतमुहम्मत, नानक आदि द्वारा प्रतिपादित दया, इन सबकी शिक्षाओं का दर्शन किया जा सकता है। यदि आज के समाज को विशृंखल करनेवाले शक्तिशाली, वैभवशाली व्यक्तियों, समूहों, देशों में यह दया की भावना आ जाय, तो न केवल उनका, बल्कि उनके साथ-साथ विश्व का कल्याण होगा। पार्श्वनाथ की चतुःसूत्री, महावीरस्वामी की पंचसूत्री और बृहदारण्यक(पंचम अध्याय, दूसरे ब्राह्मण) की तीनसूत्री 'दाम्यत, दत्त, दयध्वम्' या एकाक्षरी 'द' में वर्तमान सन्दर्भ के लिए महत्त्वपूर्ण उपदेश निहित है।
यद्यपि ये सारी बातें व्यावहारिक सुख के लिए हैं, जिसे 'सत्यम्' भी कहा गया है; यह सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् भी है। इसमें आत्मसंयमपूर्वक व्यावहारिक सामंजस्य
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