Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में वर्णित तीर्थंकर
शनै: शनैः कपोत के भीतर के देव ने अपना भार बढ़ाना प्रारम्भ किया। अन्त में मेघरथ स्वयं तुला पर बैठ गये । मेघरथ को किसी भी प्रकार धर्मच्युत न होता देख सुरूप देव ने स्वयं को प्रकट किया और क्षमा-याचना की।
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इस दृश्य में मेघरथ को एक मण्डप में नर्त्तकों, संगीतज्ञों एवं सैनिकों के मध्य बैठे दिखाया गया है। आगे एक तुला है, जिसमें एक ओर मेघरथ तथा दूसरी ओर कपोत की आकृतियाँ बनी हैं। पूर्व की ओर के दृश्य में पर्वत पर एक चैत्य बना है, जिसके साथ मेघरथ की कायोत्सर्ग-मुद्रा में एक आकृति तथा कई अन्य राजन्य युगल आकृतियाँ वार्तालाप की मुद्रा में बनी हैं। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में मेघरथ द्वारा दीक्षा ग्रहण करने तथा तपस्या करने का उल्लेख मिलता है । १३ उत्तर में शान्तिनाथ के च्यवन का दृश्यांकन है । दूसरे आयत में शान्तिनाथ के जन्म, परम्परानुरूप मेरुपर्वत पर विभिन्न इन्द्रों द्वारा उनके जलाभिषेक तथा जन्म के समय विभिन्न दिक्कुमारियों के आगमन का अंकन है ।
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तीसरे आयत में शान्तिनाथ को चक्रवर्ती के रूप में दिखाया गया है । ज्ञातव्य है कि शान्तिनाथ एक ही भव में तीर्थंकर और चक्रवर्ती दोनों हुए । सम्पूर्ण दृश्य चार छोटी पट्टिकाओं में विभाजित है । ऊपर की पट्टिका में शान्तिनाथ अधीनस्थ राजाओं के साथ बैठे हैं । नीचे दो पंक्तियों में नवनिधि के सूचक नव घट तथा १४ रत्न उत्कीर्ण हैं । १४ रत्नों के रूप में चक्र, छत्र, खड्ग, दण्ड, मणि, चर्म, काकिणी (कौड़ी) सेनापति, गृहपति, अश्व, गज, स्त्री, पुरोहित और काष्ठकार अंकित हैं । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख है कि विजय- अभियान के समय शान्तिनाथ ने नौ निधियाँ और १४ रत्न प्राप्त किये थे ।
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महावीर - मन्दिर पर उत्कीर्ण शान्तिनाथ के जीवनदृश्य तीन आयतों में विभाजित हैं, जिनमें उनके पंचकल्याणकों का अंकन किया गया है ।
प्रथम आयत में (पश्चिम की ओर से ) अचिरा देवी (शान्तिनाथ की माता) की शय्या पर लेटी आकृति है जिनके समीप १४ स्वप्न उत्कीर्ण हैं । दृश्य के नीचे 'चतुर्दशस्वप्नानि ' अभिलिखित है । आगे पुनः नवजात शिशु के साथ अचिरा देवी लेटी है जिनके नीचे 'श्री अचिरादेवी प्रसूतिगृह शान्तिनाथ' लिखा है । उत्तर की ओर इन्द्र को शिशु का अभिषेक करते दिखाया गया है। आगे पश्चिम की ओर विभिन्न अधीनस्थ शासकों के मध्य चक्रवर्ती शान्तिनाथ बैठे हैं । नीचे 'शान्तिनाथ चक्रवर्ती' लिखा है । दक्षिण पूर्व की ओर चक्रवर्ती रूप में शान्तिनाथ के विजय अभियानों का अंकन है, जिसमें उनकी गजारूढ़ और अश्वारूढ आकृतियाँ बनी है ।
उत्तर की ओर शान्तिनाथ की दीक्षा, तपस्या एवं समवसरण का अंकन हुआ है । इस दृश्य में उन्हें केशलुंचन करते, तपस्या करते तथा उपदेश देते हुए दिखाया गया है ।
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