Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
View full book text
________________
116
Vaishali Institute Research Bulletin No. 8
में
पहले से ही लौकिक जीवन की आसक्तियों के प्रति उदास होते जा रहे थे। इस बीच माता-पिता का देहान्त हो गया, उसने वैराग्य भाव को ततोऽधिक प्रज्ज्वलित कर दिया । अपने भाई नन्दिवर्धन के अनुरोध को स्वीकार कर दो वर्षों तक घर में रहकर भी अनागार साधु की तरह संयम और साधना के प्रति समर्पित ही रहे और तीस वर्ष की आयु पूरे उत्साह की लहर में मंगलवाद्यों की ध्वनि के बीच दीक्षा लेने के लिए वे अनागारी हो गये। नन्दिवर्धन ने इसके लिए अनुमति दी, आशीर्वाद देकर विदा किया। तब महावीर वर्द्धमान की आयु तीस वर्ष की थी और सिद्धार्थ कुमार की आयु उनतीस की । राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपने 'यशोधरा' नामक काव्य में यशोधरा की ओर से यह भाव यो प्रस्तुत किया है :
सिद्धि हेतु स्वामी गये यह गौरव की बात, पर चोरी-चोरी गये यही बड़ा व्याघात । सखि, वे मुझसे कह कर जाते ।
(यशोधरा)
परन्तु, बौद्ध स्रोतों के अनुसार सिद्धार्थ कुमार के हृदय में अन्तर्मन्थन चल ही रहा था। उन्होंने अपने पिता से अक्षय यौवन, सदा स्वस्थ शरीर और जीवन के लिए अमृतत्व की याचना की थी। इस याचना को नश्वरशील मनुष्य भला कैसे पूरा करता । शुद्धोदन ने जब इन याचनाओं को पूरा करने में असमर्थता प्रकट की, तब उन्होंने गृह त्याग कर प्रव्रजित हो जन्म-मरण के बन्धन से मोक्ष की प्राप्ति का आशीर्वाद माँगा। हाँ, उन्होंने अपनी पत्नी को न तो पूर्व-सूचना दी और न अनुमति ही माँगी । जरा, रोग, मृत्यु और अमरता से सम्बद्ध घटनाओं ने सिद्धार्थकुमार के जीवन को बड़ा ही करुण और मर्मस्पर्शी बना दिया है। विशेष कर वह घटना-प्रसंग तो बहुत ही मर्मन्द है, जब कुमार अपनी पत्नी यशोधरा के कक्ष के द्वार पर अपने नवजात शिशु के दर्शन के लिए उपस्थित होकर भी पुत्र मोह की दुर्बलता पर विजय पा सहसा लौट आते हैं और महल छोड़ प्रव्रज्या के लिए पूरे संकल्प के साथ निर्मम हो चल पड़ते है । सिद्धार्थ कुमार के महाभिनिष्क्रमण के ये प्रसंग सदियों तक भारत और एशिया के कलाकारों, मूर्तिकारों और चित्रकारों की सृजनधर्मी चेतना को स्पन्दित करते रहे हैं। इन दृश्यों के तक्षण और अंकन से भारतीय मूर्तिकला, चित्रकला और काव्यकला प्राणवन्त हुआ है ।
Jain Education International
इसी प्रकार सिद्धार्थकुमार के महाभिनिष्क्रमण के प्रसंग में छन्दक (सारथि) और' कन्थक (घोड़ा) के कुमार के विना लौटने पर भी शोक के सैलाब उमड़ने का अद्भुत कारुणिक दृश्य बौद्ध साहित्य में चित्रित हुआ है :
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org