Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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Vaishali Institute Research Bulletin No.8
पं. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर ने यजुर्वेद, अध्याय ३०, में आये 'मेध' का अर्थ मिलना, परस्पर मित्रता करना, ऐक्य करना, एक दूसरे को जानना, जोड़ना प्रेम करना, धारण-बुद्धि का बल और तेज बढ़ाना, पवित्र करना, सत्त्व-बल और उत्साह बढ़ाना लिखा है। 'मेघृ' धातु का अर्थ 'मेधू-मेधा-संगमनयोः हिंसायां च' अर्थात् 'मेधृ' धातु से निष्पन्न 'मेध' शब्द के मेधा, लोगों में एकता एवं प्रेम बढ़ाना तथा हिंसा ये तीन अर्थ होते हैं। जब मेध–मेधा के अन्य अर्थ भी हैं, तो हिंसावाले अर्थ के प्रति इतना दुराग्रह क्यों किया जाये, जब कि उन-उन स्थलों में उनका हिंसा से भिन्न तात्पर्य ही अभीष्ट है।
'आलभते' का अर्थ स्पर्श करना, प्राप्त करना और वध करना है। इसका अर्थ, विशेषतः वैदिक सन्दर्भ में 'वध' का नहीं करना चाहिए । 'उपनयन' में 'हृदयालम्भ' का अर्थ हृदय-स्पर्श है, हृदय का वध नहीं । ब्रह्मणे ब्राह्मणम् आलभते-ज्ञान के लिए ज्ञानी को प्राप्त करता है। क्षत्राय राजन्यम् आलभते- शौर्य के लिए शूर को प्राप्त करता है। नृत्याय सूतं आलभते-नाचने के लिए सूत को बुलाता है। धर्माय सभाचरं आलभते—धर्म ज्ञान के लिए धर्म-सभा के सदस्य को बुलाता है।
'अग्नि' शब्द के साथ 'उक्षान्न' और 'वशान्न' शब्द आये हैं । यूरोपीय विद्वानों का मानना है कि 'उक्षान' का तात्पर्य बैल का मांस और 'वशान' का अर्थ गोमांस है । जिस कारण ये नाम अग्नि के साथ वेद में आये हैं, उस कारण अग्नि में मांस डाले जाते थे और खाये भी जाते थे।
अग्नि का एक नाम 'विश्वाट्' है, उसका अर्थ सर्वभक्षक है। ऋग्वेद में अग्नि को विश्वाट् कहा है। अग्नि सर्वभक्षक है। उसमें जितनी चीजें डाली जायें, वह सभी को खा जाती है--भस्म कर डालती है। अग्नि में जितनी चीजें डाली जायें, उन्हें वह तो खा ही जाती है, तो क्या मनुष्य भी सभी चीजें खा जायगा। अग्निहोत्र में अग्नि में आम्र, खदिर, बिल्व, पलाश, वट, अर्क आदि की लकड़ियाँ डाली जाती हैं, तो क्या वैदिक आर्य इन्हें भी खाते थे। इसलिए 'उक्षान' और 'वशान' (बैल और गाय) के मांस को वैदिक खाते थे, ऐसा कहना अनुचित होगा। ‘वशान्न' शब्द का अर्थ गौ से उत्पन्न होनेवाले दूध, घी आदि पदार्थ हैं । वेद के भाष्यकार सायणाचार्य 'गोश्रिताः', 'गवाशिरः' शब्दों के विषय में निम्न प्रकार का भाष्य करते हैं— “विकारे प्रकृति शब्दः । पयोभिः मिश्रिताः। गोभिः क्षीरैः आशिरो मिश्रिताः संजाताः अर्थात् यहाँ गौ से दूध लिया जाता है, उससे मिश्रित सोम यहाँ इन शब्दों से बताया जाता है। ग्रिफिथ ने गवाशिर का अर्थ दूध से मिश्रित किया है।
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