Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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महावीर और बुद्ध के जीवन और उनकी चिन्तन-दृष्टि
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विलोक्य भूयश्चाकरोत् स्वरं सः हयं भुजाभ्यामुपगुह्य कन्थकम्।
ततो निराशो विलपन्मुहुर्मुहुः ययौ शरीरेण पुरं न चतेसा ॥९॥ छन्दक कन्थक से लिपटकर हताश हो फूट-फूटकर रोने लगता है। अनोमा नदी के तट पर अपने कौशेय वस्त्रों को त्याग, केशों को काटकर कुमार ने प्रवज्या ली। वहीं अटूट संकल्प किया कि कृतार्थ होकर ही लौटूंगा, नहीं तो अग्नि में प्रवेश कर जीवन-लीला को समाप्त कर दूंगा।१० अमृत पद की तलाश ही उनके जीवन का लक्ष्य हो गया। महावीर वर्द्धमान की अपेक्षा सिद्धार्थकुमार के जीवन के प्रसंग कहीं अधिक मानवीय संवेदना के संस्पर्श से तरल हैं। महाभिनिष्क्रमण और कठोर तपस्या :
दोनों ही महापुरुषों के जीवन में महाभिनिष्क्रमण और ज्ञानप्राप्ति की अवधि कठोर तप, ध्यान और समाधि की शिक्षा, योगाभ्यास की साधना अकल्पनीय विघ्न-बाधाओं से भरी एक कठिन जीवन-यात्रा है। यों, कैवल्य-प्राप्ति में महावीर वर्द्धमान को बारह वर्ष लगते हैं। इन वर्षों में अपने श्रेष्ठतर लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उन्होंने कौन-सा कठोर तप न किया, कौन-सा दुःख और अपमान न सहा ! महावीर के लम्बे तपस्या-काल में विघ्न-बाधाएँ तो अनेक आईं, पर उनमें कठपूतना राक्षसी द्वारा ठण्ड से ठिठुरती रात में शरीर को छेदनेवाली शीतल बूंदों की वर्षा, संगमक देव द्वारा इर्ष्यापीड़ित हो महावीर के समक्ष आँधी-तूफान ले आना, अप्सराओं के नृत्य और उनके कोमल अंगों की मोहक भाव-भंगिमाओं के प्रदर्शन द्वारा तपस्या और समाधि में विघ्न उपस्थित करने की निष्फल चेष्टा तथा समाधिमग्न महावीर के कानों में सरकण्डों को ठोंका जाना और वैद्य द्वारा उन्हें प्रयत्नपूर्वक निकालना और महावीर वर्द्धमान का उस असह्य पीड़ा को सहना आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।११
महावीर वर्द्धमान और सिद्धार्थकुमार के कैवल्य-ज्ञान और बोधि प्राप्त होने की अवधि में तो अन्तर है। महावीर को बारह वर्षों का समय लगता है और सिद्धार्थकुमार को बुद्ध होने में छह वर्षों का समय। परन्तु तपस्या के क्रम में महावीर वर्द्धमान की भाँति सिद्धार्थकुमार भी उन्हीं भयानक विपत्तियों से अटूट भाव से जूझते हैं। मार ने अपनी पुत्रियों को उनके पास भेजा। नाना प्रकार के उत्तेजक दृश्यों का प्रस्तुत कर उन्हें तपस्या के मार्ग से डिगाने का प्रयास किया है। पर वे तो अपनी तपश्चर्या में अडिग रहे। छ: वर्षों तक कठोर तपस्या एक आसन पर की। उनकी हड्डियाँ, पसलियाँ साफ गिनी जातीं । चरवाहे कान और नाक के सुराख से आर-पार तिनके निकाल लेते । तपस्या के क्रम में सिद्धार्थ कुमार ने सुजाता से खीर का आहार ग्रहण किया।१२ ग्यारहवें चातुर्मास में, संगमक देव महावीर की क्षमाशीलता से पूर्णतः पराभूत हो गया । वे व्रजग्राम
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