Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 282
________________ जैन दर्शन में आत्मतत्त्व : एक विश्लेषण आदा णाणपमाणं गाणं पोयप्पमाण मुद्दि | सोयं लोयालोयं तम्हा णारां तु सव्व गयं ॥ २६ अर्थात्, आत्मा ज्ञान- प्रमाण है तथा ज्ञान ज्ञेय-प्रमाण कहा गया है । ज्ञेय लोक और अलोक है । इस कारण से ज्ञान भी सर्वगत है । इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए वह आगे कहते हैं : अप्पत्ति मदं वट्टदि णआणं विणा ण अप्पाणं । तम्हा णाणं अप्पा- अप्पा णाणं वा अण्णं वा ॥ .२७ अर्थात् ज्ञान आत्मा है, ऐसा माना गया है, चूँकि ज्ञान आत्मा के बिना नहीं रहता है, इसलिए ज्ञान आत्मा है और आत्मा के सिवाय अन्य गुणों का भी आश्रय है । अतः ज्ञान रूप भी है और अन्य रूप भी है । अर्थात्, 253 निष्कर्षतः, हम कह सकते हैं कि 'आत्मतत्त्व' पर भारतीय दर्शन में गहन विचार-विमर्श हुआ है । भारतीय दर्शनों में 'आत्मतत्त्व' की स्वतन्त्र सत्ता को स्वीकार किया गया है। आत्मा एवं जीव का समानार्थक विवेचन हुआ है। आत्मा की अलौकिक सत्ता के सम्बन्ध में गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में कहा है : ईश्वर अंस जीव अविनासी । चेतन अमल सहज सुख रासी ॥ (उत्तरकाण्ड, दोहा नं. ११६, चौ. नं. २ ) ॥ आदि शंकराचार्य ने कहा है-कि जो कुछ करोड़ों ग्रन्थों में कहा गया है, उसे मैं आधे श्लोक में कहता हूँ : 'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापर: । ' Jain Education International ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है । जीव भी ब्रह्म ही है, दूसरा नहीं । परन्तु, जैनदर्शन में जितना 'आत्मतत्त्व' पर विशद वर्णन मिलता है, उतना अन्य किसी दर्शन में नहीं । आत्मतत्त्व, जैनदर्शन में सर्वप्रथम एवं प्रमुख तत्त्व के रूप में प्रतिष्ठित है तथा अन्य तत्त्वों का विवेचन भी इसी की महत्ता के कारण विशेष रूप से प्रतीत होता है । आत्मतत्त्व के बिना अन्य तत्त्वों का कोई अस्तित्व नहीं दीख पड़ता है I यही कारण है कि प्रायः समस्त वैदिक एवं अवैदिक दर्शनों ने 'आत्मतत्त्व' की सत्ता को स्वीकार किया है और मोक्षप्राप्ति का ही लक्ष्य माना है। मोक्ष को निर्वाण एवं कैवल्य की संज्ञा दी गई है। मोक्ष वह स्थिति है, जिसमें आत्मा अपनी विशुद्धावस्था को प्राप्त कर जन्म और मृत्यु के चक्र से छूट जाती है और उसका पुनर्जन्म नहीं होता है । पुनर्जन्म For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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