Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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मूर्त अंकनों में जिनेतर शलाकापुरुषों के जीवनदृश्य
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सुनन्दा के गर्भ से हुआ था, तक्षशिला का शासक बनाया। राज्याभिषेक के कुछ समय पश्चात् भरत ने अपना दिग्विजय-अभियान प्रारम्भ किया तथा शीघ्र ही स्वयं को विश्वविजेता के रूप में स्थापित किया। अपनी इस विजय यात्रा में भरत ने अनुज बाहुबली-सहित अपने अन्य ९८ भाइयों से अपनी अधीनता स्वीकार करने को कहा। बाहुबली के अतिरिक्त अन्य भाइयों ने भरत की अधीनता स्वीकार कर ली। फलस्वरूप भरत एवं बाहुबली के मध्य द्वन्द्वयुद्ध हुआ। इस द्वन्द्वयुद्ध के अन्तर्गत उनके मध्य दृष्टियुद्ध, मुष्टियुद्ध, वाग्युद्ध और बाहुयुद्ध हुआ, जिन सब में बाहुबली विजेता रहे । युद्ध में बाहुबली को अपराजेय पाकर भरत ने द्वन्द्वयुद्ध की पूर्वनियत शर्तों के प्रतिकूल बाहुबली पर कालचक्र से प्रहार किया। भरत की इस असीम राज्यलिप्सा को देखकर बाहुबली के मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। विजयोपरान्त अयोध्या लौटने पर भरत को चक्रवर्ती पद पर आसीन किया गया। उन्होंने चक्रवर्ती रूप में सांसारिक सुखों का भोग करते हुए लम्बे अन्तराल तक शासन किया।
कुम्भरिया के शान्तिनाथ मन्दिर एवं दिलवाड़ा स्थित विमलवसही के वितानों पर भरत-बाहुबली-युद्ध के प्रसंग उत्कीर्ण हैं। सर्वाधिक विस्तार-पूर्वक विमलवसही के रंगमण्डप से सटे (प्रवेशद्वार के समीप) वितान पर हुआ है। इस उदाहरण में एक ओर अयोध्या नगरी और दूसरी ओर तक्षशिला नगरी दिखाई गई है। प्रत्येक दृश्य या आकृति के नीचे उनकी पहचान और नाम भी उत्कीर्ण हैं।
सर्वप्रथम विनीता (अयोध्या) नगरी का अंकन है, जिसके नीचे 'श्रीभरतेश्वरस्तथा विनीताभिधाना नगरी' अभिलिखित है। शिबिका में आसीन स्त्री-आकृतियों के नीचे 'भगिनी बाम्मी माता सुमंगला तथा समस्त अन्त:पुर' लिखा है। शिबिका में बैठी अन्य स्त्री-आकृति के नीचे 'सुन्दरी स्त्री-रत्न' उत्कीर्ण है। प्रवेश द्वार को 'प्रतोली' कहा गया है। आगे भरत की विशाल सेना को बाहुबली से युद्ध के लिए जाते दिखाया गया है। एक गज के नीचे ‘पाट हस्ति विजयगिरि' अंकित है (विजयगिरि भरत का सबसे अच्छा हाथी था)। उस गज पर आरूढ़ योद्धा को 'महामात्य मतिसागर' कहा गया है (मतिसागर भरत का मुख्य मन्त्री था)। गजारूढ़ एक अन्य योद्धा सेनापति सुषेण है, जिसके नीचे सेनापति सुसेन' अभिलिखित है। उसके पीछे भरत का रथ है, जिसके नीचे ‘भरतेश्वरस्य' लिखा है। दोनों ओर गजों, अश्वों एवं पदाति-सेनाओं की कतारें द्रष्टव्य हैं।
तक्षशिला नगरी से सम्बद्ध अंकन के नीचे 'बाहुबलिस्तथा तक्षशिला राजधानी' उत्कीर्ण है। समीप में उत्कीर्ण एक स्त्री और पुरुष आकृतियों के नीचे क्रमश: 'पुत्री जसोमती' एवं 'सिंहरथ सेनापति' लिखा है। आगे नगर द्वार से प्रस्थान करती सेना को
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