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कोई नाचे जा रहा है, कि रुकता ही नहीं! तो बुद्धि कहेगी: कहीं पागल तो नहीं हो गये हो? ये तो पागलों के लक्षण हैं।
यही बड़ी अजीब दुनिया है : यहां सिर्फ पागल ही प्रसन्न दिखाई पड़ते हैं ! इसलिए बुद्धि कहती है, पागल हो गये होओगे, क्योंकि यहां पागलों के सिवा किसी को प्रसन्न देखा है? यहां हजार कारण होते हैं, तब भी आदमी प्रसन्न नहीं होता। बड़ा महल हो, धन हो, संपत्ति हो, सुख-सुविधा हो, तब भी आदमी प्रसन्न नहीं होता। यह दुनिया दुखी लोगों की दुनिया है। मगर दुखी लोगों की भीड़ है। यहां अगर तुम हंसने लगो अकारण तो लोग कहेंगे पागल हो गये हो! अगर तुम कहो कि हंसी आ रही है, कोई कारण नहीं है, फैली जा रही है, भीतर से उठ रही है, लहर आ रही है—लोग कहेंगे, बस, दिमाग खराब हो गया। यहां तुम शक्ल बना कर चलो, उदास रहो, तुम्हारी शक्ल देख कर भूत-प्रेत भी डरें, तो बिलकुल ठीक हो; तो कोई अड़चन नहीं है; तो सब ठीक चल रहा है; तुम आदमी जैसे आदमी हो; जैसा आदमी होना चाहिए वैसे आदमी हो। लेकिन तुम मुस्कुराने लगो, तुम हंसने लगो, तुम गीत गुनगुनाने लगो, तुम राह के किनारे खड़े हो कर नाचने लगो-बस, तुम पागल हो गये!
परमात्मा को हमने इस भांति इनकार किया है कि अगर परमात्मा आये तो हम उसे पागलखाने में बंद कर देंगे। शायद इसी कारण नहीं आता. आने से डरता है।। ___ तुम जरा सोचो, कृष्ण अगर मिल जायें चौराहे पर बांसुरी बजाते, मोर-मुकुट बांधे, पीतांबर डाले, गोपियां नाचती हों-क्या करोगे? तत्क्षण पुलिस-थाने जाओगे कि कुछ गड़बड़ है! यह क्या हो रहा है? जो नहीं होना चाहिए वह हो रहा है—तुम इस आदमी को जेलखाने में डालोगे।
आनंद निष्कासित कर दिया गया है। हमने आनंद को जीवन के बाहर कर दिया है। हम दख को छाती से लगा कर बैठे हैं। यहां दुखी आदमी बुद्धिमान मालूम होता है; यहां आनंदित आदमी पागल मालूम होता है। सारी सरणी उलटी है।
तो स्वाभाविक है। जीवन भर जिसको तुमने बुद्धिमानी समझा है, आज अचानक अगर खोने लगेगी, खिसकने लगेगी, अगर आज अचानक नींव उखड़ने लगेगी तुम्हारी तथाकथित बुद्धिमानी की,
और अचानक झांकने लगेगी प्रसन्नता–'अकारण' खयाल रखना! पागलपन का मतलब यह होता है: अकारण प्रसन्न! कारण भी नहीं है कुछ। बैठे हैं अकेले और मुस्कुराहट आ रही है। बस, पागल हो गये। क्योंकि ऐसा तो हमने सिर्फ पागलों को ही देखा है।
ध्यान रखना ः पागलों में और परमहंसों में थोड़ा-सा संबंध है। पागल भी हंसते हैं, प्रसन्न होते हैं, क्योंकि बुद्धि गंवा दी। परमहंस भी हंसते हैं, प्रसन्न होते हैं, क्योंकि बुद्धि के पार आ गये। दोनों-पागल बुद्धि से नीचे गिर जाता है, इसलिए हंस लेता है; परमहंस बुद्धि के पार चला जाता है, इसलिए हंसता है—दोनों में थोड़ी समानता है।
पागल और परमहंस में एक बात समान है कि दोनों ने बुद्धि गंवाई। एक ने होशपूर्वक गंवाई है, एक ने बेहोशी में गंवाई है—इसलिए फर्क बहुत है। जमीन-आसमान जितना फर्क है। लेकिन फिर भी एक समानता है। इसलिए कभी-कभी तुम्हें पागल में परमहंस दिखाई पड़ेगा और कभी-कभी परमहंस में पागल। तो भूल-चूक हो जाती है।
पश्चिम के पागलखानों में ऐसे बहुत-से लोग बंद हैं जो पागल नहीं हैं। अभी वहां बड़ी क्रांति
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1