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कैसे? छोडूं क्या? पकड़ा हो तो छोडूं। हो तो छोडूं।
तुम सुबह उठ कर यह तो नहीं कहते कि चलो अब सपने का त्याग करें। तुम यह तो नहीं कहते सुबह उठ कर कि रात सपने में सम्राट बन गया था, बड़े स्वर्ण-महल थे, रत्न-जटित आभूषण थे, बड़े दूर-दूर तक मेरा राज्य था, सुंदर पुत्र थे, पत्नी थी-सुबह उठ कर तुम यह तो नहीं कहते कि चलो अब सब छोड़ता हूं। कहो तो तुम पागल मालूम पड़ोगे। अगर तुम सुबह उठ कर गांव में ढिंढोरा पीटने लगो कि मैंने सब त्याग कर दिया है—राज्य का, धन का, वैभव का, पत्नी-बच्चे, सब छोड़ दिए–लोग चौंकेंगे। वे कहेंगे, 'कौन-सा राज्य? हमें तो पता ही नहीं कि तुम्हारे पास कोई राज्य भी था।' तुम कहोगे, रात सपने में ! तो लोग हंसेंगे कि तुम पागल हो गए हो। सपने का राज्य छोड़ा तो नहीं जा सकता। ___ इसलिए परमज्ञान का सूत्र यही है कि जब तुम्हें दिखाई पड़ता है कि यह संसार कुछ भी नहीं है, तो छोड़ने की क्या बात है? लेकिन लोग हैं जो हिसाब रखते हैं कि कितना छोड़ा। __एक मित्र मुझे मिलने आए थे। उनकी पत्नी भी साथ थी। मित्र का नाम है बड़े दानियों में। तो मित्र की पत्नी कहने लगी कि शायद आपको मेरे पति से परिचय नहीं, ये बड़े दानी हैं! कोई लाख रुपया दान कर दिया!
पति ने जल्दी से पत्नी के हाथ पर हाथ रखा कि लाख नहीं, एक लाख दस हजार!
यह दान न हुआ, यह हिसाब हुआ। यह सौदा हुआ। यह कौड़ी-कौड़ी का हिसाब चल रहा है। अगर कहीं इनको परमात्मा मिल गया तो उसकी गर्दन पकड़ लेंगे, कि एक लाख दस हजार दिया था, बदले में क्या देते हो बोलो? दिया भी इसीलिए है कि शास्त्र कहते हैं कि यहां एक दो, वहां करोड़ गुना मिलता है। ऐसा धंधा कौन छोड़ेगा! करोड़ गुना! सुना है ब्याज? कोई धंधा देखा? जुआरी भी इतने बड़े जुआरी नहीं। करोड़ गुना तो वहां भी नहीं मिलता है। यह तो जुआरीपन हुआ। इस आशा • में छोड़ा है कि लाख छोड़ेंगे तो करोड़ गुना मिलेगा। यह लोभ का ही विस्तार हुआ।
और लाख का हिसाब? तो रुपए का मूल्य अभी समाप्त नहीं हुआ है! पहले तिजोड़ी में रुपये रखते थे; अब तिजोड़ी में रुपये की जगह, क्या-क्या त्याग किया है, उसका हिसाब रख लिया है। मगर सपना टूटा नहीं।
चीन में एक बड़ी प्राचीन कथा है कि एक सम्राट का एक ही बेटा था। वह बेटा मरण-शय्या पर पड़ा था। चिकित्सकों ने कह दिया हार कर कि हम कुछ कर न सकेंगे; बचेगा नहीं, बचना असंभव है। बीमारी ऐसी थी कि कोई इलाज नहीं था। दिन दो दिन की बात थी, कभी भी मर जाएगा। तो बाप रात भर जाग कर बैठा रहा। विदा देने की बात ही थी। आंख से आंसू बहते रहे, बैठा रहा। कोई तीन बजे करीब रात को झपकी लग गई बाप को बैठे-बैठे ही। झपकी लगी तो एक सपना देखा कि एक बहुत बड़ा साम्राज्य है, जिसका वह मालिक है। उसके बारह बेटे हैं-बड़े सुंदर, युवा, कुशल, बुद्धिमान, महारथी, योद्धा! उन जैसा कोई व्यक्ति नहीं संसार में। खूब धन का अंबार है! कोई सीमा नहीं! वह चक्रवर्ती है। सारे जगत पर उसका साम्राज्य है! ऐसा सपना देखता था, तभी बेटा मर गया। पत्नी दहाड़ मार कर रो उठी। उसकी आंख खुली। चौंका एकदम। किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। क्योंकि अभी-अभी एक दूसरा राज्य था, बारह बेटे थे, बड़ा धन था—वह सब चला गया; और इधर यह
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1
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