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परमार्थतः तुम कौन हो—तब तुम जानते हो कि अहंकार एक व्यावहारिक सत्य था।
यह बात समझ लेनी चाहिए। व्यावहारिक सत्य और पारमार्थिक सत्य के बीच का भेद समझ लेना चाहिए। एक कागज का टुकड़ा मैं तुम्हें देता हूं और कहता हूं यह सौ रुपये का नोट है; तुम कहते हो, यह कागज का टुकड़ा है। मैं तुम्हें सौ रुपये का नोट देता हूं और कहता हूं यह कागज का टुकड़ा है; तुम कहते हो, नहीं यह सौ रुपए का नोट है। दोनों कागज के टुकड़े हैं। जिसको तुम सौ रुपये का नोट कह रहे हो वह व्यावहारिक सत्य है, पारमार्थिक नहीं। अगर सरकार बदल जाए या सरकार का दिमाग बदल जाए और वह आज सुबह घोषणा कर दे कि सौ रुपये के नोट अब सौ रुपये के नोट नहीं, अब नहीं चलेंगे, चलन के बाहर हो गए–तो तत्क्षण सौ रुपये का नोट कागज का टुकड़ा हो जाएगा। लोग निकाल कर घूरों पर फेंक आएंगे कि क्या करेंगे। कल तक इतना सम्हाल-सम्हाल कर रखते थे, अब बच्चों को खेलने को दे देंगे कि खेलो, कागज की नाव बना कर नदी में चला दो। क्या करोगे? व्यावहारिक सत्य था, माना हुआ सत्य था। माना था, इसलिए सत्य था। सबने मिल कर माना था, इसलिए सत्य था। सबने इंकार कर दिया, बात खत्म हो गई। ___अहंकार व्यावहारिक सत्य है-सौ रुपए का करेंसी नोट है। मानो तो है। और जिंदगी के लिए जरूरी भी है। मैं तुमसे यह नहीं कह रहा हूं कि तुम अहंकार को छोड़ कर जिंदगी में अड़चन बन जाओ। मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि अहंकार से जाग जाओ; इतना समझ लो कि यह व्यावहारिक सत्य है, पारमार्थिक नहीं। इसका उपयोग करो-भरपूर! करना ही होगा। लेकिन इसे सच्चाई मत मानो। सच्चाई मानने से बड़ी अड़चन हो जाती है। हम जो मान लेते हैं वैसा दिखाई पड़ने लगता है।
कल मैं एक घटना पढ रहा था-एक प्रयोग। हार्वर्ड विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान-विभाग ने एक प्रयोग किया। एक बड़ा मनोवैज्ञानिक, जिसकी ख्याति सारे मल्क और मल्क के बाहर है, उसको उन्होंने कहा कि हम एक प्रयोग करना चाहते हैं, आप सहयोग दें। एक आदमी पागल है, दिमाग उसका खराब है और वह घोषणा करता है कि वह बड़ा भारी मनोवैज्ञानिक है। एक दूसरे विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक का वह नाम लेता है कि मैं वही हूं। आप उसका इलाज करें। और आप जो एक-दूसरे के साथ बात करेंगे, वह हम सब उसकी फिल्म लेना चाहते हैं, ताकि हम उसका अध्ययन कर सकें बाद में। वह मनोवैज्ञानिक राजी हो गया। __ वे दूसरे आदमी के पास गए—मनोवैज्ञानिक के पास, दूसरे विश्वविद्यालय के। और उससे कहा कि एक पागल है, वह अपने को बड़ा मनोवैज्ञानिक समझता है। आप उसका इलाज करेंगे? हम फिल्म लेना चाहते हैं। वह भी राजी हो गया।
ये दोनों बड़े मनोवैज्ञानिक, इन दोनों को वे एक कमरे में लाये, पर दोनों एक-दूसरे को मान रहे हैं कि दूसरा पागल है और गलती से, भ्रांति से घोषणा कर रहा है कि मैं बड़ा मनोवैज्ञानिक हैं। उन्होंने पूछा, आप कौन? दोनों ने उत्तर दिया। दोनों ने वही उत्तर दिया जो सही था—उनके लिए सही था। लेकिन दूसरा मुस्कुराया—उसने कहा, 'तो अच्छा तो बिलकुल दिमाग इसका खराब ही है? यह अपने को क्या समझ रहा है?' दोनों एक-दूसरे के इलाज का उपाय करने लगे। और जितना वह पागलक्योंकि दोनों एक-दूसरे को पागल समझते हैं—जितना एक-दूसरे का उपाय करने लगा इलाज का, वह दूसरा भी चकित हुआ कि हद हो गयी, पागलपन की भी सीमा है! न केवल यह पागल है, बल्कि
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1