Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 377
________________ अहंकार से, अहंकार पूरा बच जाएगा। अगर सपने में से तुमने कुछ भी बचा लिया और तुम्हें लगता रहा कि यह सच है तो पूरा सपना बच जाएगा। क्योंकि जिसको सपने में अभी सच दिखाई पड़ रहा है, वह अभी जागा नहीं । इसलिए मैं जोर दे कर बार-बार कहता हूं : तुम पूरे गलत हो। इससे तुम्हें बेचैनी होती है। मुझसे कभी नाराज भी हो जाते हो कि पूरे गलत ! ऐसा तो नहीं हो सकता कि हम बिलकुल ही गलत हों ! तुम्हारे अहंकार को मैं कोई जगह बचने की नहीं देता । तुमसे कहता हूं, तुम पूरे ही गलत हो । लेकिन इससे तुम उदास मत होना, क्योंकि इससे मैं एक और बात भी कह रहा हूं जो शायद तुम्हें सुनाई न पड़ रही हो, कि तुम चाहो तो पूरे के पूरे अभी सही हो सकते हो। उस आशा के दीप पर ध्यान दो । अगर पूरे गलत हो तो पूरे के पूरे सही हो सकते हो। अगर तुम थोड़े-थोड़े गलत हो, थोड़े-थोड़े सही हो - तो तुम थोड़े-थोड़े गलत और थोड़े-थोड़े सही ही रहोगे। तब तुम पूरे के पूरे सही न हो सकोगे । तब तुम घसीटते रहोगे अपने अतीत को । तब तुम एक मिश्रित खिचड़ी रहोगे । और खिचड़ी होने में सुख नहीं । खिचड़ी होने में नर्क है। I तुम शुद्ध हो। तुम एक रोशनी से भरो। और उस रोशनी से भरने के लिए इतना ही जानना जरूरी है कि तुमने अभी तक अपने को जो माना है, वह तुम नहीं हो। तुम कोई और हो। कोई अज्ञात तुम्हारे भीतर छिपा है | कोई अज्ञात कमल तुम्हारे भीतर खिलने को राजी है, जरा मुड़ो भीतर की तरफ ! जरा रुको, किसी छाया में बैठो। धूप मत भागो! विश्राम! और उसी विश्राम में ध्यान और समाधि है । चौथा प्रश्न : कल आपने कहा कि धार्मिक व्यक्ति सदा विद्रोही होता है। तो क्या विद्रोही व्यक्ति सहज हो सकता है ? ने निश्चित कहा कि धार्मिक व्यक्ति सदा विद्रोही होता है, लेकिन मैंने यह नहीं कहा कि सभी विद्रोही व्यक्ति धार्मिक होते हैं। विद्रोही कोई हो सकता है बिना धार्मिक हुए, , लेकिन धार्मिक कोई नहीं हो सकता बिना विद्रोही हुए। तो फिर धार्मिक विद्रोही और विद्रोही में क्या फर्क होगा ? जो साधारण विद्रोही है, जिसमें धर्म नहीं है, राजनीतिक, सामाजिक विद्रोही है, उस विद्रोही का जीवन कभी सहज नहीं हो सकता। वहां उद्देश्य — उसे जो भावे 363

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