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गिर
आदमी फिर तुम्हारी तरफ कभी देखेगा भी नहीं। वह विनम्रता नहीं थी—वह नया अहंकार का रंग था; अहंकार ने नये वस्त्र ओढ़े थे, विनम्रता के वस्त्र ओढ़े थे। __ तो तुम अगर 'मैं' से छूटने की कोशिश किये, तो यह जो छूटने वाला है, यह एक नये 'मैं' को निर्मित कर लेगा। आदमी पैरहन बदलता है! कपड़े बदल लिये, मगर तुम तो वही रहोगे।
अष्टावक्र की बात समझने की कोशिश करो; जल्दी मत करो कि क्या करें, कैसे अहंकार से छुटकारा हो? करने की जल्दी मत करो; थोड़ा समझने के लिए विश्राम लो। अष्टावक्र यह कह रहे हैं कि 'मैं' बनता कैसे है, यह समझ लो-करने से बनता है, चेष्टा से बनता है, यत्न से बनता है, सफलता से बनता है। तो तुम जहां भी यत्न करोगे, वहीं बन जायेगा। ____तो फिर एक बात साफ हो गई कि अगर अहंकार से मुक्त होना है तो यत्न मत करो, चेष्टा मत करो। जो है, उसे वैसा ही स्वीकार कर लो। उसी स्वीकार में तुम पाओगेः अहंकार ऐसे मिट गया, जैसे कभी था ही नहीं। क्योंकि उसको जो ऊर्जा देने वाला तत्व था. वह खिसक गया. र्बा गई, अब भवन ज्यादा देर न खड़ा रहेगा।
और अगर कर्ता का भाव गिर जाये, तो जीवन की सारी बीमारियां गिर जाती हैं; अन्यथा जीवन में बड़े जाल हैं। धन की दौड़ भी कर्ता की दौड़ है। पद की दौड़ भी कर्ता की दौड़ है। प्रतिष्ठा की दौड़ भी कर्ता की दौड़ है। तुम दुनिया को कुछ करके दिखाना चाहते हो। ___ मेरे पास कई लोग आ जाते हैं, वे कहते हैं कि ऐसा कुछ मार्ग दें कि दुनिया में कुछ करके दिखा जायें। क्या करके दिखाना चाहते हो? कि नहीं, वे कहते हैं कि 'नाम रह जाये। हम तो चले जायेंगे, लेकिन नाम रह जाए!' नाम रहने से क्या प्रयोजन? तुम्हारे नाम में और किसी की कोई उत्सुकता नहीं है, सिवाय तुम्हारे। जब तुम्हीं चले गये, कौन फिक्र करता है! जब तुम्हीं न बचोगे, तो तुम्हारा नाम क्या खाक बचेगा? तुम न बचे, जीवंत, तो नाम तो केवल तख्ती थी, वह क्या खाक बचेगा? कौन फिक्र करता है तुम्हारे नाम की? और नाम बच भी गया तो क्या सार है? किन्हीं किताबों में दबा पड़ा रहेगा, तड़फेगा वहां! सिकंदर का नाम है, नेपोलियन का नाम है-क्या सार है?
नहीं, लेकिन हमें बचपन से ये रोग सिखाये गये हैं। बचपन से यह कहा गया है : 'कुछ करके मरना, बिना करे मत मर जाना! अच्छा हो तो अच्छा, नहीं तो बुरा करके मरना, लेकिन नाम छोड़ जाना।' लोग कहते हैं, 'बदनाम हुए तो क्या, कुछ नाम तो होगा ही। अगर ठीक रास्ता न मिले, तो उलटे रास्ते से कुछ करना, लेकिन नाम छोड़ कर जाना!' लोग ऐसे दीवाने हैं कि पहाड़ जाते हैं, तो पत्थर पर नाम खोद आते हैं। पुराना किला देखने जाते हैं, तो दीवालों पर नाम लिख आते हैं। और जो आदमी नाम लिख रहा है, वह यह भी नहीं देखता कि दूसरे नाम पोंछ कर लिख रहा है। तुम्हारा नाम कोई दूसरा पोंछ कर लिख जायेगा। तुम दूसरे का पोंछ कर लिख रहे हो। दूसरों के लिखे हैं, उनके ऊपर तुम अपना लिख रहे हो और मोटे अक्षरों में; कोई और आ कर उससे मोटे अक्षरों में लिख जायेगा। किस पागलपन में पड़े हो?
अलबेले अरमानों ने सपनों के बुने हैं जाल कई। एक चमक ले कर उठे हैं. जज्बाते-पामाल कर्ड। रूप की मस्ती,प्यार का नशा,नाम की अजमत,जर का गुरूर
नियंता नहीं-साक्षी बनो
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