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जो मिला है वह हमें दिखायी नहीं पड़ता। जरा इन आंखों का तो खयाल करो, यह कैसा चमत्कार है। आंख चमड़ी से बनी है, चमड़ी का ही अंग है; लेकिन आंख देख पाती है, कैसी पारदर्शी है! असंभव संभव हुआ है। ये कान सुन पाते संगीत को, पक्षियों के कलरव को, हवाओं के मरमर को, सागर के शोर को! ये कान सिर्फ चमड़ी और हड्डी से बने हैं, यह चमत्कार तो देखो! ___ तुम हो, यह इतना बड़ा चमत्कार है कि इससे बड़ा और कोई चमत्कार क्या तुम सोच सकते हो। इस हड्डी, मांस-मज्जा की देह में चैतन्य का दीया जल रहा है, जरा इस चैतन्य के दीये का मूल्य तो आंको!
नहीं, लेकिन तुम्हारी इस पर कोई दृष्टि नहीं! तुम कहते हो, हमें सौ रुपये की नौकरी मिलनी चाहिए थी, नब्बे रुपये की मिली-मरेंगे, आत्महत्या कर लेंगे! कि होना चाहिए था मिनिस्टर, केवल डिप्टी मिनिस्टर हो पाये-नहीं जीयेंगे! कि मकान बड़ा चाहिए था, छोटा मिला-अब कोई सार रहने का नहीं है! कि दिवाला निकल गया, कि बैंक में खाता खाली हो गया-अब जीने में सार क्या है! कि एक स्त्री चाही थी, वह न मिली; कि एक पुरुष चाहा था, वह न मिला-बस अब मरेंगे!
जितना तुम चाहोगे उतना ही तुम्हारे जीवन में दुख होगा। जितना तुम देखोगे कि बिना चाहे कितना मिला है! अपूर्व तुम्हारे ऊपर बरसा है! अकारण! तुमने कमाया क्या है? क्या थी कमाई तुम्हारी, जिसके कारण तुम्हें जीवन मिले? क्या है तुम्हारा अर्जन, जिसके कारण क्षण भर तुम सूरज की किरणों में नाचो, चांद-तारों से बात करो? क्या है कारण? क्या है तुम्हारा बल? क्या है प्रमाण तुम्हारे बल का, कि हवाएं तुम्हें छुएं और तुम गुनगुनाओ, आनंदमग्न हो, कि ध्यान संभव हो सके? इसके लिए तुमने क्या किया है ? यहां सब तुम्हें मिला है-प्रसादरूप! फिर भी तुम परेशान हो। फिर भी तुम कहे चले जाते हो। फिर भी तुम उदास हो। जरूर अहंकार का रोग खाये चला जा रहा है। वही सबको पकड़े हुए है।
मैंने सुना है, एक परिवार के सभी सदस्य फिल्मों में काम करते थे। एक बार परिवार का मुखिया अपने पारिवारिक डाक्टर के पास आया और बोला, 'डाक्टर साहब, मेरे बेटे को छूत की बीमारी है—स्कारलेट फीवर। और वह मानता है कि उसने घर की नौकरानी को चूमा है।'
'आप घबड़ाइये नहीं,' डाक्टर ने सलाह दी, 'जवानी में खून जोश मारता ही है।'
'आप समझे नहीं डाक्टर,' वह आदमी बोला और थोड़ा बेचैन होकर, 'सच बात यह है कि उसके बाद मैं भी उस लड़की को चूम चुका हूं।'
'तब तो मामला कुछ गड़बड़ नजर आता है,' डाक्टर ने स्वीकार किया। 'अभी क्या गड़बड़ है, डाक्टर साहब! उसके बाद मैं अपनी पत्नी को भी दो बार चूम चुका हूं।'
इतना सुनते ही डाक्टर अपनी कुर्सी से उछलकर चिल्लाया, 'तब तो मारे गए! तब तो यह वाहियात बीमारी मुझे भी लग चुकी होगी!'
वे उनकी पत्नी को चूम चुके हैं। ऐसे बीमारी फैलती चली जाती है! अहंकार छूत की बीमारी है।
जब बच्चा पैदा होता है तो कोई अहंकार नहीं होता; बिलकुल निरहंकार, निर्दोष होता है; खुली किताब होता है; कुछ भी लिखावट नहीं होती; खाली किताब होता है! फिर धीरे-धीरे अक्षर लिखे
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1