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लेगी। तुम्हारा तो सिर्फ वही है जो किसी से बिना छीने तुम्हारा है, तो फिर मौत भी न छीन पायेगी। तुम्हारा तो वही है जो जन्म के पहले तुम्हारा था, मौत के बाद भी तुम्हारा होगा। - उस एक की खोज करो। और उस एक की खोज के लिए साधन तक की जरूरत नहीं हैअष्टावक्र कहते हैं-सिर्फ सजगता, सिर्फ साक्षी-भाव।। ___ जीवन में तुम्हें बहुत बार लगता भी है कि व्यर्थ दौड़े चले जा रहे हैं, लेकिन रुकें कैसे! ऐसा नहीं है कि तुम्हें नहीं लगता कि यह व्यर्थ दौड़-धूप है। तुम्हें भी लगता है लेकिन रुकें कैसे! फिर दौड़-धूप का अभ्यास प्राचीन है। रुकना भूल ही गये हैं। पैरों की आदत दौड़ने की हो गई है। मन की आदत दौड़ने की हो गई है। अभ्यास ऐसा हो गया है कि बैठ नहीं सकते। बैठने का अभ्यास खो गया है।
आ गयी थी शिकायत लबों पे मगर किससे कहते तो क्या, कहना बेकार था चल पड़े दर्द पी कर तो चलते रहे
हार कर बैठ जाने से इनकार था। और फिर लोग सोचते हैं कि ऐसे बैठ गये तो हार जायेंगे; बैठ गये तो लोग समझेंगे हार गये; बैठ गये तो लोग समझेंगे, अरे पलायनवादी! भगोड़े! बैठ गये तो जो भीड़ जा रही है हजारों की, वह निंदा से देखेगी।...तो लोग चलते रहते हैं।
शिकायत बहुत बार आ जाती है मन में कि यह सब व्यर्थ मालूम होता है, लेकिन किससे कहो! कौन समझेगा! यहां सभी तुम्हारे जैसे हैं। कोई किसी से कहता नहीं। अपने-अपने घाव छिपाए लोग चलते रहते हैं।
आ गयी थी शिकायत लबों पे मगर
किससे कहते तो क्या, कहना बेकार था कोई अष्टावक्र मिले, कोई बुद्ध मिले तो कहने का कोई सार है। किससे कहना यहां!
चल पड़े दर्द पी कर तो चलते रहे दर्द पी-पीकर लोग चलते रहते हैं।
हार कर बैठ जाने से इनकार था। और यह अहंकार की धारणा हो जाती है कि हारकर बैठने का मतलब तो गये, डूब गए, मर गये। चलते रहो. कछ न कछ करते रहो। कछ न कछ पाने की चेष्टा में लगे रहो। नहीं तो खो जाओगे। ___और मिलता उन्हें है जो बैठ जाते हैं। मिलता उन्हें है जो रुक जाते हैं। परमात्मा भागने से नहीं मिलता, रुकने से मिलता है। इसलिए अष्टावक्र कहते हैं, परम विश्रांति में मिलता है।
कभी थोड़ा बैठो। कभी घड़ी भर खोजकर, सिर्फ बैठो, कुछ मत करो!
झेन फकीरों में एक प्रक्रिया है : झाझेन। झाझेन का मतलब होता है : बस बैठो और कुछ मत करो। बड़ी गहरी ध्यान की प्रक्रिया है। प्रक्रिया कहनी ठीक ही नहीं; क्योंकि प्रक्रिया तो कुछ भी नहीं, बस बैठो, कुछ भी न करो। जैसे अष्टावक्र जो कह रहे हैं, वही झेन कह रहा है : बैठ जाओ! कुछ देर सिर्फ बैठो विश्राम में। कुछ देर सब ऊहापोह छोड़ो! कुछ देर सब महत्वाकांक्षा छोड़ो। मन की दौड़-धूप, आपाधापी छोड़ो! थोड़ी देर सिर्फ बैठे रहो, डूबे रहो अपने में!
साधना नहीं-निष्ठा, श्रद्धा
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