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लगता है पाप हुआ; साक्षी रहना मुश्किल हो जाता है— या तो मूच्छित हो जाओ और या नियंता हो जाओ। साक्षी होना न तो मूच्छित होना है और न नियंता होना है— दोनों के मध्य में खड़ा होना है। एक तरफ गिरो, कुंआ; एक तरफ गिरो, खाई -बीच में रह जाओ, तो सधे, तो समाधि ।
ये दोनों आसान हैं। कामवासना में मूर्च्छित हो जाना बिलकुल आसान है; बिलकुल भूल जाना कि क्या हो रहा है, नशे में हो जाना आसान है। कामवासना को नियंत्रण कर लेना, जबर्दस्ती रोक लेना, सम्हाल लेना, वह भी आसान है। मगर दोनों में ही तुम चूक रहे हो। व्यभिचारी भी चूक रहा है, ब्रह्मचारी भी चूक रहा है। वास्तविक ब्रह्मचर्य तो तब घटित होता है, जब तुम दोनों के मध्य में खड़े हो, जब तुम सिर्फ देख रहे हो। तब तुम पाओगे कि कामवासना भी शरीर में ही उठी और शरीर में ही गूंजी; मन में थोड़ी छाया पड़ी, और विदा हो गई। तुम तो दूर खड़े रहे ! तुममें कैसी कामवासना ! तुममें वासना हो ही कैसे सकती है? तुम तो द्रष्टा मात्र हो ।
और अक्सर ऐसा होगा कि जब ध्यान ठीक लगने लगेगा, तो कामवासना जोर पकड़ेगी। यह तुम समझ लो, क्योंकि अधिक लोगों को ऐसा होगा। ध्यान जब ठीक लगने लगेगा, तो तुम्हारे जीवन
एक विश्राम आयेगा, तनाव कम होगा। तो जन्मों-जन्मों से तुमने जो जबर्दस्ती की थी, कामवासना के साथ जो दमन किया था, वह हटेगा। तो दबी-दबाई वासना तेज ज्वाला की तरह उठेगी। इसलिए ध्यान के साथ अगर कामवासना उठे, तो घबड़ाना मत, यह ठीक लक्षण है कि ध्यान ठीक जा रहा है; ध्यान काम कर रहा है; ध्यान तुम्हारे तनाव हटा रहा है, नियंत्रण हटा रहा है, तुम्हारा दमन हटा रहा है; ध्यान तुम्हें सहज प्रकृति की तरफ ला रहा है।
पहले ध्यान तुम्हें प्रकृतिस्थ करेगा और फिर परमात्मा तक ले जायेगा। क्योंकि जो अभी नैसर्गिक नहीं है, उसका स्वाभाविक होना असंभव है । जो अभी प्रकृति के साथ भी नहीं है, वह परमात्मा के साथ नहीं हो सकता। तो ध्यान पहले तुम्हें प्रकृति के साथ ले जाएगा, फिर तुम्हें परमात्मा के साथ ले जाएगा। प्रकृति, परमात्मा का बाह्य आवरण है । अगर उससे भी तुम्हारा मेल नहीं है, तो अंतरतम के परमात्मा से कैसे मेल होगा ? प्रकृति तो परमात्मा के मंदिर की सीढ़ियां हैं। अगर तुम सीढ़ियां ही न चढ़े, तो मंदिर के अंतर्गृह में कैसे प्रवेश होगा ?
अगर तुम मेरी बात समझ पाओ, तो अब और दमन मत करो! अब चुपचाप उसे भी स्वीकार कर लो। परमात्मा जो दृश्य दिखाता है, शुभ ही होगा । परमात्मा दिखाता है, तो शुभ ही होगा। तुम नियंत्रण मत करो, और न तुम निर्णायक बनो, और न तुम पीछे से खड़े होकर यह कहो कि यह ठीक और यह गलत मैं ऐसा करना चाहता और ऐसा नहीं करना चाहता । तुम सिर्फ देखो !
उम्र ढलती जा रही है,
शमा-ए-अरमां भी पिघलती जा रही है, रफ्त- रफ्ता आग बुझती जा रही है,
शौक रमते जा रहे हैं,
सैल थमते जा रहे हैं,
राग थमता जा रहा है, खामोशी का रंग जमता जा रहा है,
नियंता नहीं-साक्षी बनो
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