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पहला प्रश्नः मनोवैज्ञानिक सिग्मंड फ्रायड ने मृत्यु-एषणा, थानाटोस की चर्चा की। आपने कल जीवेषणा, ईरोस की चर्चा की। फ्रायड की धारणा को क्या आप आधुनिक युग की आध्यात्मिक विकृति कहते हैं? कृपा करके हमें समझाएं।
वन द्वंद्व है। और जो भी यहां है उससे णा विपरीत भी जरूर होगा, पता हो न
पता हो। जहां प्रेम है वहां घृणा है। और जहां प्रकाश है वहां अंधकार है। और जहां परमात्मा है वहां पदार्थ है। तो जीवेषणा के भीतर भी छिपी हुई मृत्यु-एषणा भी होनी ही चाहिए।
आधुनिक युग की विकृति नहीं है फ्रायड का वक्तव्य। फ्रायड ने एक बहुत गहरी खोज की है। जीवेषणा की चर्चा तो सदा से होती रही। फ्रायड ने जो थोड़ा-सा अनुदान किया है जगत की प्रतिभा को, उस अनुदान में मृत्यु-एषणा की धारणा भी है। आदमी जीना चाहता है, यह तो सच है; लेकिन ऐसी घड़ियां भी होती हैं जब आदमी मरना चाहता है, यह भी उतना ही सच है। _ थोड़ा सोचो, जवान हो तुम, तो जीना चाहते हो। फिर एक दिन वृद्ध हुए, शिथिल हुए गात, अंग थके, जीवन में जो जानने योग्य था जान लिया, करने योग्य था कर लिया, भोगने योग्य था भोग लिया, अब सब विरस हुआ, अब किसी बात में कोई रस नहीं आता, अब सब पुनरुक्ति मालूम होती है, ऊब पैदा होती है तो क्या तम मरना न चाहोगे? क्या अंतरतम में एक गहरी आवाज न उठने लगेगी कि अब बहुत हुआ, अब परदा गिरे, अब नाटक समाप्त हो?
जिसे पूरब के मनीषियों ने वैराग्य कहा है, वह मृत्यु-एषणा की ही छाया है। जिसे बुद्ध ने निर्वाण कहा है, वह मृत्यु-एषणा की ही आत्यंतिक परिकल्पना है।
क्या है निर्वाण? हम कहते हैं कि इस देश में आवागमन से छुटकारा। क्या हुआ इसका अर्थ? इसका अर्थ हुआ: बहुत हो चुका जीवन, अब हम लौट कर नहीं आना चाहते; बहुत हो चुका, एक सीमा है, अब हम थक गए हैं और हम परम विश्राम चाहते हैं। इसको ही फ्रायड मृत्यु-एषणा कहता है। शब्द से ही मत घबड़ा जाना। जीवेषणा है राग, मृत्यु-एषणा है विराग। जीवेषणा तुम्हें बांधे रखती है माया से; मृत्यु-एषणा मुक्त करेगी। खुद फ्रायड को भी ठीक-ठीक साफ नहीं है कि उसने जो खोज लिया है, उसका पूरा-पूरा अर्थ क्या होगा! मृत्यु-एषणा की खोज उसने अपने जीवन के अंतिम चरण में की; शायद स्वयं भी मृत्यु-एषणा से भर गया होगा, तब की। स्वयं भी परेशान हो गया, क्योंकि जीवन भर तो लस्ट, लिबिडो, जीवेषणा, वासना—इसका ही अनुसंधान किया और जीवन की अंतिम