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कि सपना टूट गया – ये सब घोषणाएं फिर काम नहीं आतीं, फिर सपना पकड़ लेता है। बड़ा प्रबल प्रभाव मालूम होता है सपने का । तो कहीं यह रोज-रोज सुबह उठ कर जो घोषणा हम करते हैं सपने झूठ होने की, वैसी ही अध्यात्म की घोषणा तो नहीं है ?
मैं एक कविता कल पढ़ रहा था :
यह तीसरा फरेबे - मुहब्बत है मालती, मैं आज फिर फरेबे-मुहब्बत में आ गया।
प्रेमी अपनी प्रेयसी से, किसी मालती से कह रहा है :
यह तीसरा फरेबे - मुहब्बत है मालती,
यह तीसरी बार भ्रम हो रहा है।
मैं आज फिर फरेबे-मुहब्बत में आ गया। रुखसार दिलशिकार हैं आंखें हैं दिलनशीं शोलाजने - खिरद है तेरा हुस्ने - आतशीं । मैं सोचता रहा, मैं बहुत सोचता रहा,
लेकिन तेरा जमाल, नजर में समा गया।
पहले भ्रमों की भी याद है । पहले और मालतियां धोखा दे गईं। यह तीसरा भ्रम है; दो मालतियां आ चुकीं जा चुकीं ।
मैं सोचता रहा, मैं बहुत सोचता रहा, लेकिन तेरा जमाल नजर में समा गया। गो जानता हूं यह भी तमन्ना का है फरेब, गो जानता हूं यह भी तमन्ना का है फरेब, गो मानता हूं राहे - मुहब्बत है पुरनसेब,
यह सब झूठ, यह सब सपना, यह सब फरेब - यह सब जानता हूं । लेकिन बगैर इसके भी चारा नहीं मेरा,
इसके बिना भी चलता नहीं।
लेकिन बगैर इसके भी चारा नहीं मेरा,
कुछ भी बजुज फरेब सहारा नहीं मेरा ।
और इन भ्रमों के सिवा कोई सहारा ही नहीं मालूम होता, सपनों के सिवाए कोई जिंदगी ही नहीं मालूम होती ।
तुझ-सी परी जमाल हसीनाओं के बगैर, मैं हूं सनमपरस्त, गुजारा नहीं मेरा ।
मैं आज फिर फरेबे - मुहब्बत में आ गया यह तीसरा फरेबे - मुहब्बत है मालती ।
तीसरा क्या, तीसवां, तीन सौवां, तीन हजारवां — मगर फरेब जारी रहता है।
जनक से अष्टावक्र कहने लगे, यह कहीं सुबह उठे हुए आदमी की बात तो नहीं कि सपना था,
जीवन की एकमात्र दीनता वासना
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