Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 409
________________ में तो सब साफ-सुथरा हो गया, लेकिन तेरे तलघरे की क्या स्थिति है ? अगर तलघरे में आग जल रही है तो धुआं जल्दी ही पहुंच जाएगा तेरे बैठकखाने में भी। और अगर तलघरे में गंदगी भरी है तो तू बैठकखाने में कब तक सुवास को कायम रख सकेगा ? उतर भीतर सीढ़ी-सीढ़ी। खोज बीजों को अचेतन में, और वहां दग्ध कर ले। और अगर तू वहां न पाए तो फिर ठीक हुआ। तो फिर जो हुआ, ठीक हुआ। दुख, तृष्णा, काम, लोभ, क्रोध सभी बीमारियां हमारे सतत अभ्यास के फल हैं। यह अकारण नहीं है, हमने बड़ी मेहनत से इनको सजाया-संवारा है। हमने बड़ा सोच-विचार किया है। हमने इनमें बड़ी धन-संपत्ति लगाई है। हमने बड़ा न्यस्त स्वार्थ इनमें रचाया है। यह हमारा पूरा संसार है। जब कोई आदमी कहता है कि मैं दुख से मुक्त होना चाहता हूं, तो उसे खयाल करना चाहिए कि वह दुख के कारण कुछ लाभ तो नहीं ले रहा है, कोई फसल तो नहीं काट रहा है ? अगर फसल काट रहा है दुख के कारण, तो दुख से मुक्त होना भला चाहे, हो न सकेगा। अब कुछ लोग हैं जिनका कुल सुख इतना ही है कि जब वे दुख में होते हैं तो दूसरे लोग उन्हें सहानुभूति दिखलाते हैं । तुमने देखा, पत्नी ऐसे बड़ी प्रसन्न है, रेडियो सुन रही है। पति घर की तरफ आना शुरू हुए, तो रेडियो बंद, सिरदर्द... एकदम सिरदर्द हो जाता है ! ऐसा मैंने देखा, अनेक घरों में मैं ठहरा हूं, इसलिए कह रहा हूं। मैं देखता रहा कि अभी पत्नी बिलकुल सब ठीक थी, मुझसे ठीक से बात कर रही थी, यह सब, और तब पति के आने का हार्न बजा नीचे और वह गई अपने कमरे में और लेट गई और पति मुझे बताने लगे कि उसके सिर में दर्द है । यह हुआ क्या मामला? मैं यह नहीं कह रहा हूं कि दर्द नहीं है। दर्द होगा, मगर दर्द के पीछे कारण है गहरा । पति सहानुभूति ही तब देता है, पास आ कर बैठ कर सिर पर हाथ ही तब रखता है, जब दर्द होता है। यह स्वार्थ है उस दर्द में । दर्द वस्तुतः हो गया होगा, क्योंकि वह जो आकांक्षा है कि कोई हाथ माथे पर रखे... और पति बिना दर्द के तो हाथ रखता नहीं। अपनी पत्नी के माथे पर कौन हाथ रखता है ! वह तो मजबूरी है कि अब वह सिरदर्द बना कर बैठी है, अब करो भी क्या ! हालांकि उसको अपना अखबार पढ़ना है किसी तरह, लेकिन सिर पर हाथ रख कर बैठा है। अब यह सिर पर हाथ रखने की जो भीतर कामना है— कोई सहानुभूति प्रगट करे, कोई प्रेम जाहिर करे, कोई ध्यान दे -अगर यह तुम्हारे दुख में समाविष्ट है, तो तुम लाख कहो हम दुख से मुक्त होना चाहते हैं, तुम मुक्त न हो सकोगे। क्योंकि तुम एक हाथ से तो पानी सींचते रहोगे और दूसरे हाथ से शाखाएं काटते रहोगे। ऊपर से काटते भी रहोगे, भीतर से सींचते भी रहोगे। इससे कभी छुटकारा न होगा। देखना, दुख में तुम्हारा कोई नियोजन तो नहीं है, इनवेस्टमेंट तो नहीं है ? मंजर रहीने-यास है, नाजिर उदास है, मंजिल है कितनी दूर, मुसाफिर उदास है । परवाज में कब आएगी रिफअत खयाल की नारस हैं बालो पर ताइर उदास है। तख्लीके - शाहकार का इम्कां नहीं अभी, अशआर बेकरार है, शायर उदास है। जीवन की एकमात्र दीनता वासना 395

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