Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 410
________________ मुद्दत से यात्री को तरसती है मूर्ति, सुनसान कोहसार का मंदिर उदास है । एहसासो-फिक्र दोनों का हासिल है इस्तिराद शायर है महवे-यास मुवक्खिर उदास है। यहां सभी उदास हैं। पक्षी उदास है, उड़ नहीं पाता। हो सकता है, सोने के पिंजड़े से मोह लग गया हो । यहां कवि उदास है, क्योंकि उदासी के गीत ही लोग सुनते हैं और तालियां बजाते हैं। यहां विचारक उदास है, क्योंकि हंसते और आनंदित आदमी को तो लोग पागल समझते हैं, विचारक कौन समझता है ? यहां सब उदास हैं। इस उदासी से भरे वातावरण में, उदासी के पार होना बड़ा मुश्किल मालूम होता है। यहां की हवा उदास है। यहां की हवा में कामवासना है, क्रोध है, लोभ है, मोह है। यहां मोक्ष की किरण को उतारना बड़ा कठिन है। लेकिन जनक के जीवन में किरण उतरी है । उतरी है, इसलिए अष्टावक्र सब तरह से परीक्षा कर लेना चाहते हैं -कहीं भूल चूक न हो जाए, कहीं कोई छिद्र न रह जाए ! इस महाकरुणा के वश, वे ऐसे कठोर वचन जनक को बोलने लगे कि तू जरा देख तो! तू भी कहीं उसी जाल में न पड़ जाना, जिसमें बहुत मुनि पड़े हैं, बहुत ज्ञानी पड़े हैं। बहुत-से समझदार नासमझियों में उलझे हैं। बहुत-से पंडित शास्त्रों में दबे हैं । और बहुत-से त्याग की बातें करने वाले भीतर अभी भी धन की आकांक्षा से भरे हैं। इन सबकी ठीक से तू जांच-पड़ताल कर ले। यह सब न हो, तब तेरी उदघोषणा में सत्य है। हरि ॐ तत्सत् ! 396 अष्टावक्र: महागीता भाग-1

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