________________
· प्रसाद को मुफ्त में मत मांगना । अपनी आहुति देनी होती है। अपनी आहुति दे कर मांगोगे तो ही मिलेगा । और कुछ देने से न चलेगा।
आदमी ने खूब तरकीबें निकाली हैं। फूल तोड़ लेता वृक्षों के, मंदिर में चढ़ा आताधोखा देते हो? फूल चढ़े ही थे परमात्मा को वृक्षों पर, तुमने उन्हें जुदा कर दिया। फूल ज्यादा जीवित थे वृक्षों पर, ज्यादा परमात्मा के साथ अठखेलियां कर रहे थे, तुमने उन्हें मार डाला। तुम मरे इन फूलों को, मरी एक प्रतिमा के सामने रख आए - और सोचे कि फूल चढ़ा आए ? सोचे कि अर्ध्य हुआ? सोचे कि अर्चना पूरी हुई? प्रार्थना पूरी हुई? जला आए एक मिट्टी का दीया और सोचे कि रोशनी हो गई ?
इतना सस्ता काम नहीं। जलाना होगा दीया भीतर प्राणों का और चढ़ाना होगा फूल - अपने ही परम चैतन्य के विकास का ! अपना ही सहस्रार, अपना ही सहस्र दलों वाला कमल जिस दिन तुम चढ़ा आओगे — उस दिन ! यह सिर अपना ही चढ़ाना होगा !
आदमी खूब चालाक है! उसने नारियल निकाल लिया है। नारियल आदमी जैसा लगता है, सिर जैसा। इसलिए तो उसको खोपड़ा कहते हैं । खोपड़ी ! उसमें दो आंखें भी होती हैं, दाढ़ी-मूंछ सब उसमें होते हैं। नारियल चढ़ा आए। सिंदूर लगा आए। अपने रक्त की जगह सिंदूर लगा आए? अपने सिर की जगह नारियल चढ़ा आए? अपने सहस्रार की जगह और किन्हीं फूलों के, वृक्षों के फूल छीन लिए — उनको चढ़ा आए? किसको धोखा देते हो ? अपने को चढ़ाना होगा ! और अपने को चढ़ाने का एक ही उपाय है :
'मैं तो लाख यतन कर हारयो, अरे हां, रामरतन धन पायो ।'
320
अष्टावक्र: महागीता भाग-1