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चौथा प्रश्न ः सुना था कि शराब कड़वी होती है और सीने को जलाती है; पर आपकी शराब का स्वाद ही कुछ और है।
तो जिस शराब
तुम परिचित रहे, वह शराब न रही होगी; क्योंकि शराब न
तो कड़वी होती और न सीने को जलाती। और जो सीने को जलाती है और कड़वी है, वह शराब का धोखा है, शराब नहीं। तो तुम्हें शराब का पहली दफे ही स्वाद आया ।
अब झूठी शराब में मत उलझना। अब तुम पहली दफा मधुशाला में प्रविष्ट हुए। अब अपने हृदय को पात्र बनाना और जी भर कर पी लेना; क्योंकि इसी पीने से क्रांति होगी। यह शराब विस्मरण नहीं लायेगी; यह शराब स्मरण लायेगी। वह शराब भी क्या जो बेहोश बना दे ? शराब तो वही, जो होश में ला दे। यह शराब तुम्हें जगायेगी। यह शराब तुम्हें उससे परिचित करायेगी, जो तुम्हारे भीतर छिपा बैठा है। यह शराब तुम्हें तुम बनायेगी।
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बाहर से शायद तुम दूसरे लोगों को पियक्कड़ मालूम पड़ो - घबड़ाना मत ! तुम्हारी मस्ती शायद बाहर के लोग गलत भी समझें, पागल समझें, बेहोश समझें – तुम फिक्र मत करना; कसौटी तुम्हारे भीतर है। अगर तुम्हारा होश बढ़ रहा हो तो दुनिया कुछ भी समझे, तुम फिक्र मत करना । मजाज की कुछ पंक्तियां हैं
मेरी बातों में मसीहाई है लोग कहते हैं कि बीमार हूं मैं खूब पहचान लो असरार हूं मैं जिन्से -उल्फत का तलबगार हूं मैं इश्क ही इश्क है दुनिया मेरी फितना - ए - अक्ल से बेजार हूं मैं ऐब जो हाफिज -ओ-खय्याम में था हां, कुछ उसका भी गुनहगार हूं मैं जिंदगी क्या है गुनाहे - आदम जिंदगी है तो गुनहगार हूं मैं मेरी बातों में मसीहाई है, लोग कहते हैं कि बीमार हूं मैं !
सस को भी लोग बीमार ही कहते थे, मसीहा तो बड़ी मुश्किल से कहा । सुकरात को भी लोग पागल ही कहते थे, तभी तो जहर दिया। मंसूर को लोगों ने बुद्धिमान थोड़े ही माना, अन्यथा फांसी लगाते ? और अष्टावक्र की कथा तो मैंने तुमसे कही : खुद बाप ही इतने नाराज हो गए कि अभिशा दे दिया, कि आठ अंगों से तिरछा हो जा ।
जीसस तो तैंतीस साल जमीन पर रहे तब सूली लगी; सुकरात तो बूढ़ा होकर मरा, तब जहर
हरि ॐ तत्सत्
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