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हैं, अष्टावक्र चुपचाप सुन रहे हैं। एक शब्द नहीं बोले । वे चाहते हैं, बह जाए यह आश्चर्य । एक बार इसे कह लेने दो जो हुआ है; इसके भीतर जो घटा है, इसको फूट कर बह जाने दो।
तुमने देखा, कोई आदमी को दुख घटता है, वह अगर दुख कह ले तो मन हलका हो जाता है! तुम्हें अभी दूसरी घटना का पता नहीं कि जब सुख घटता है तो भी न कहो तो हलका नहीं हो पाता आदमी। सुख घटा नहीं, इसलिए उस घटना का तुम्हें अनुभव नहीं है।
सारे जगत के बड़े शास्त्र जन्मे, ये इसलिए जन्मे कि जब आनंद घटा तो जिसको घटा वह बिना कहे न रह सका। उसे कहना ही पड़ा। कह कर वह हलका हुआ । चार को सुना कर बोझ टला । दुख काही बोझ नहीं होता, सुख की भी बड़ी घनी पीड़ा होती है। मधुर ! आनंद की भी बड़ी घनी पीड़ा होती है, जैसे तीर चुभ जाए। गुनगुनाना होगा; गाना होगा, नाचना होगा। पद घुंघरू बांध मीरा नाची! वह नाचना ही पड़ा। वह जो घटा है भीतर, वह इतना बड़ा है कि वह तुम्हें अगर डांवांडोल न करे तो घटा ही नहीं। वह अगर तुम्हें नचा न दे तो घटा ही नहीं। वह तुम्हें कंपा न दे तो घटा ही नहीं ।
जैसे बड़े तूफान में वृक्ष की छोटी-सी पत्ती नाचती हो, कांपती हो - ऐसा जनक कंप गए होंगे। 'आश्चर्य कि मुझे द्वैत दिखाई नहीं देता।'
यह मेरी आंखों को क्या हुआ ? सदा द्वैत ही देखा था, अनेक देखा था; आज सब एक हो गया है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति में मिला हुआ मालूम पड़ता है। सबकी सीमाएं एक-दूसरे में लीन हुई मालूम होती हैं । सब एक-दूसरे में प्रविष्ट हुए मालूम होते हैं। यह हुआ क्या !
तुम यहां बैठे हो, अगर अचानक तुम्हें जनक जैसी घटना घटे तो तुम क्या देखोगे ? तुम यह नहीं "देखोगे, यहां इतने लोग बैठे हैं; तुम देखोगे, यह मामला क्या है ? ये इतने लोग अचानक खो गए ? रूप तो बैठे हैं, लेकिन एक की आत्मा दूसरे में बह रही है, दूसरे की आत्मा तीसरे में बह रही है, सब एक-दूसरे में बहे जा रहे हैं। यह हुआ क्या है ? ये लोग फूट क्यों गए? इनके घड़े टूट क्यों गए? इनके प्राण एक दूसरे में क्यों उतरे जा रहे हैं?
ऐसा ही हो रहा है; तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता है, इसलिए एक बात है। ऐसा ही हो रहा है। तुम्हारी श्वास दूसरे में जा रही है, दूसरे की श्वास तुम में आ रही है। तुम्हारी ऊर्जा दूसरे में जा रही है, दूसरे की ऊर्जा तुम में आ रही है।
अब तो इसके वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि हम एक-दूसरे में बहते रहते हैं । इसीलिए तो ऐसा हो जाता है कि अगर तुम किसी उदास आदमी के पास बैठो तो तुम उदास हो जाते हो । उसका उदास प्राण तुम में बहने लगता है। तुम किसी हंसते, प्रसन्नचित्त आदमी के पास बैठो, उसकी प्रसन्नचित्तता तुम्हें छूने लगती है, संक्रामक हो जाती है; कोई तुम्हारे भीतर हंसने लगता है। तुम कभी-कभी चकित भी होते हो कि हंसी का मुझे तो कोई कारण न था, मैं कोई प्रसन्नचित्त अवस्था में भी न था; लेकिन हुआ क्या? दूसरे तुम में बह गए।
वैज्ञानिक कहते हैं कि जब तुम किसी की तरफ बहुत प्रेम से देखते हो तो तुम्हारे भीतर से एक ऊर्जा उसकी तरफ बहती है। अब इस ऊर्जा को नापने के भी उपाय हैं । तुम्हारी तरफ से एक विशिष्ट ऊष्मा, गर्मी उसकी तरफ प्रवाहित होती है— ठीक वैसे ही जैसे विद्युत के प्रवाह होते हैं; ठीक वैसे ही विद्युतधारा तुम्हारी तरफ से उसकी तरफ बहने लगती है ।
जब जागो तभी सवेरा
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