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बड़ा कर्ता हो उतना बड़ा अहंकार होता है। तमने अगर कुछ खास नहीं किया तो तुम क्या अहंकार रखोगे? तुमने एक बड़ा मकान बनाया, उतना ही बड़ा तुम्हारा अहंकार हो जाता है। तुमने एक बड़ा साम्राज्य रचाया, तो उतनी ही सीमा तुम्हारे अहंकार की हो जाती है। __इसीलिए तो दुनिया को जीतने के लिए पागल लोग निकलते हैं। दुनिया को जीतने थोड़े ही निकलते हैं! दुनिया किसने कब जीती? लोग आते हैं, चले जाते हैं दुनिया को कौन जीत पाता है! लेकिन दुनिया को जीतने निकलते हैं—घोषणा करने कि मेरा अहंकार इतना विराट है कि सारी दुनिया को छोटा कर दूंगा, घेर लूंगा, सीमा बना दूंगा; मैं ही परिभाषा बनूंगा सारे जगत की! सिकंदर और नेपोलियन और तैमूर और नादिर और सारे पागल दुनिया को घेरने चलते हैं। यह दुनिया को घेरने के लिए जो आकांक्षा है, यह अहंकार की आकांक्षा है।
किसी को तुमने देखा? मंत्री हो गया या मुख्यमंत्री हो गया, तब उसकी चाल देखी! फिर पद पर नहीं रहा, तब उसको देखा! ऐसी खराब हालत हो जाती है पद से उतरकर! आदमी वही है, बल खो जाता है। वह जो अहंकार का विष था, जो गति दे रहा था, नशा दे रहा था, वह चाल में जो मस्ती आ गयी थी, सिर ऊंचा उठ गया था, रीढ़ सीधी हो गयी थी—वह सब खो जाता है। क्या हो गया? एक क्षण पहले इतना बल मालूम होता था, एक क्षण बाद ऐसा निर्बल हो गया।
राजनीतिज्ञ पदों से उतरकर ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहते। राजनीतिज्ञ जब तक जीतते हैं तब तक बलशाली रहते हैं; जैसे ही हारने लगते हैं, वैसे ही बल खो जाता है। मनोवैज
कि लोग रित
रिटायर होकर जल्दी मर जाते हैं। दस साल का फर्क पडता है. थोड़ा-बहुत फर्क नहीं। जो आदमी अस्सी साल जीता है, वह जब साठ साल में रिटायर हो जाता है तो सत्तर में मर जाता है। वह आदमी अस्सी साल जी सकता था. कोई और कारण न था मरने का: लेकिन मरने का एक कारण मिल गया कि जब तुम कलेक्टर थे, कमिश्नर थे, पुलिस-इंस्पेक्टर थे, या कांस्टेबल ही सही, स्कूल के मास्टर ही सही...। स्कूल के मास्टर की भी अकड़ होती है। उसकी भी एक दुनिया होती है। तीस-चालीस लड़कों पर तो रोब बांधे ही रखता है। उनको तो दबाये ही रखता है। वहां तो सम्राट ही होता है। ___ कहते हैं, जब औरंगजेब ने अपने बाप को कारागृह में बंद कर दिया, तो उसके बाप ने कहा कि मुझे यहां मन नहीं लगता। तू एक काम कर, तीस-चालीस छोटे-छोटे लड़के भेज दे, तो मैं एक मदरसा खोल दूं। ___ कहते हैं कि औरंगजेब ने कहा कि बाप जेल में तो पड़ गया है, लेकिन पुरानी सम्राट होने की अकड़ नहीं जाती। तो तीस-चालीस लड़कों पर ही अब मालकियत करेगा। उसने इंतजाम कर दिया। __ छोटा-छोटा स्कूल का मास्टर भी तीस-चालीस लड़कों की दुनिया में तो राजा है। बड़े से बड़े राजा को भी इतना बल कहां होता है! कहो उठो, तो उठते हैं लोग; कहो बैठो तो बैठते हैं लोग। सब उसके हाथ में है। स्कूल का मास्टर ही सही, कलेक्टर हो, डिप्टी कलेक्टर हो, मिनिस्टर हो, कोई भी हो, जैसे ही रिटायर होता है वैसे ही बल खो जाता है; अब कोई रास्ते पर नमस्कार नहीं करता। अब कहीं भी कोई उसकी सार्थकता नहीं मालूम होती; वह फिजूल मालूम पड़ता है, जैसे कूड़े के ढेर पर फेंक दिया गया, या कबाड़खाने में डाल दिया गया। अब उसकी कहीं कोई जरूरत नहीं; जहां भी जाता
जैसी मति वैसी गति
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