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भीतर जेल के बंद हैं, तो थोड़ी हालत उनकी ठीक भी है कि कम से कम चलो जेल में तो बंद हैं, कर भी क्या सकते हैं? लेकिन जो बाहर हैं, तुम्हें उनका पता नहीं; वे बड़े कसमसा रहे हैं। वे भीतर ही भीतर डांवाडोल हो रहे हैं कि न हड़ताल हो रही है, न नारेबाजी, न झंडा ऊंचा रहे हमारा! कुछ भी नहीं हो रहा। सब जिंदगी बेकार मालूम होती है। तुम्हें पता नहीं कि सब राजनीतिक लोगों की हालत कैसी बुरी है! कुछ करने जैसा नहीं लगता। कोई उपद्रव, कोई उत्पात ! वही उत्पात उनका भोजन है।
राजनीतिक व्यक्ति उत्पात में रस रखता है। उत्पात करने के लिए वह कारण खोजता है, बड़े सुंदर कारण खोजता है कभी गरीब के बहाने, कभी स्वतंत्रता के बहाने, कभी प्रजातंत्र-लोकतंत्र के बहाने, कभी यह कभी वह, लेकिन वह हमेशा कारण खोज लेता है। कोई न कोई कारण खोज लेता है कि उपद्रव चाहिए, क्योंकि उपद्रव के बिना वह रह नहीं सकता। राजनीतिक व्यक्ति एक तरह की बेचैनी है। और बेचैनी मार्ग खोजती है बहने का। उसके लिए कैथार्सिस चाहिए, रेचन चाहिए।
धार्मिक व्यक्ति एक सहज शांति है। सौ में से निन्यानबे मौकों पर तो तुम उसे कभी विरोध में न पाओगे। हां, एक मौके पर वह 'नहीं' कहेगा, जरूर कहेगा। और उस मौके पर जब वह नहीं कहेगा तो वह 'नहीं' निरपेक्ष 'नहीं होगी, उसमें कोई शर्त न होगी; उसके 'हां' में बदलने का कोई उपाय नहीं है।
तुम मार डाल सकते हो सुकरात को। तुम जीसस को सूली पर लटका सकते हो। तुम मंसूर का गला काट सकते हो। लेकिन उस एक मौके पर जब वह 'नहीं' कहता है तो उसकी 'नहीं' शाश्वत है, उसको तुम 'हां' में नहीं बदल सकते। क्योंकि वह उसी एक मौके पर 'नहीं' कहता है जहां उसकी आत्मा को खोने का सवाल है; अन्यथा तो उसके पास खोने को कुछ भी नहीं है; अन्यथा तो सब खेल है।
पांचवां प्रश्नः आप तो सतत प्रभु-प्रसाद लुटा रहे हैं, प्रभु-कृपा की वर्षा हो रही है, परंतु हम चूकते ही चले जाते हैं। पात्रता कैसे संभव होगी?
| मल्ला नसरुद्दीन से कोई पूछता था कि
आपकी सफलता का रहस्य क्या है? 'सही निर्णय पर काम करना', मुल्ला नसरुद्दीन ने उत्तरं दिया। लेकिन सही निर्णय किए कैसे जाते हैं?' उस आदमी ने पूछा। 'अनुभवों के आधार पर', मुल्ला ने कहा। और अनुभव किस प्रकार प्राप्त होते हैं?' उस आदमी ने फिर पूछा। मुल्ला ने कुछ सोचा और फिर कहा, 'गलत निर्णयों पर काम करके।'
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1