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छूटती है। 'मेरा' नए-नए आश्रय बनाता चला जाता है। एक आश्रय उजाड़ो, वह उसके पहले दूसरी जगह आश्रय बना लेता है। एक नीड़ गिराओ, दूसरी जगह नीड़ बना लेता है। लेकिन 'मेरा' तो बचता ही चला जाता है।
अष्टावक्र ने कहा, सब भूतों में आत्मा को और आत्मा में सब भूतों को जानते हुए भी मैं तुमसे कहता हूं जनक, ऐसे मुनि हैं, जिनको ममता होती है। असली आश्चर्य तो यही है। तुम क्या आश्चर्य की बात कर रहे हो कि शुद्ध-बुद्ध आत्मा कैसे संसार में पड़ गई! छोड़ो यह फिक्र। उससे बड़े आश्चर्य मैंने देखे हैं। मुनि हो गए हैं, सब छोड़ दिया है, घोषणा भी कर दी...!
सर्वभूतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि। मुनेजनित आश्चर्यं ममत्वमनुवर्तते।।।
मैं तुम्हें असली आश्चर्य बताता हूं। जिन्होंने सब छोड़ दिया, फिर भी कुछ छूटा नहीं, ममता मौजूद है—इससे बड़ा चमत्कार तुम देखोगे! साधु भी गृहस्थ है, संन्यासी भी बंधा है। मोक्ष की आकांक्षा करने वाले अभी संसार में ही भटक रहे हैं। बातें मोक्ष की हैं, प्राण संसार में अटके हैं। तो जरा सोच कर करना, एकदम जल्दी मुनि मत बन जाना। क्योंकि यह चमत्कार होता है।
अष्टावक्र निश्चित ही कठोर गुरु रहे होंगे। कठोर गुरु होना ही चाहिए। गुरु कठोर न हो तो करुणावान नहीं। उसकी कठोरता ही उसकी करुणा है। वे कसने लगे, खूब ठोंकने लगे। जनक भी घबड़ाया होगा। जनक ने तो पहले सोचा होगा कि इतनी ऊंची बातें कहीं, गुरु एकदम छाती से लगा लेंगे कि धन्यभाग! कि तू उपलब्ध हो गया! लेकिन ये गुरु भी खूब हैं! ये अष्टावक्र तो उल्टी डांट पिलाने लगे। ___ मगर अष्टावक्र ने ठीक किया। कसौटियों से गुजर कर ही सोने की परख होती है, आग से गुजर कर ही सोना कुंदन बनता है। ___ 'परम अद्वैत में आश्रय किया हुआ और मोक्ष के लिए भी उद्यत हुआ पुरुष काम के वश हो कर क्रीडा के अभ्यास से व्याकल होता है यही आश्चर्य है।' ____ आदमी मरते-मरते दम, मर रहा हो, आखिरी क्षण तक भी, मौत द्वार पर दस्तक दे रही हो, तब तक भी कामवासना से पीड़ित होता है। और साधारण आदमी नहीं-परम अद्वैत में आश्रय किया हुआ! जो परम अद्वैत में अपनी आस्था की घोषणा कर चुका है, जो कहता हमने घर बना लिया भगवान में, वह भी! और मोक्ष के लिए उद्यत हुआ भी; वह जो कहता है हम मोक्ष की तरफ प्रयाण कर रहे हैं, वह भी!
'...पुरुष काम के वश हो कर क्रीड़ा के अभ्यास से व्याकुल होता है—यही आश्चर्य है।'
पुरानी आदतें जाती नहीं। बोध भी आ जाता है तो पुरानी आदतें लौट-लौट कर हमला करती हैं। आदतें बदला लेती हैं। ____ मैंने सुना है, एक अंधा और एक लंगड़ा दो मित्र थे—दोनों भिखारी। और दोनों की मित्रता एकदम जरूरी भी थी, क्योंकि एक अंधा था और एक लंगड़ा था। लंगड़ा चल नहीं सकता था, अंधा देख नहीं सकता था। तो अंधा चलता था और लंगड़ा देखता था। लंगड़ा अंधे के कंधों पर बैठ जाता, दोनों भिक्षा मांग लेते। साझेदारी थी भिखारी की दूकान में। लेकिन कभी-कभी झगड़ा भी हो जाता
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1