Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 408
________________ किं कहीं कोई चूक न रह जाए। सब नियम साफ कर दिए हैं। थोड़े से तुम भी अभ्यास करते हो, उनमें से अनजाने; मगर अगर किताब पढ़ लोगे तो तुम जान-बूझ कर, ठीक से, व्यवस्था से अभ्यास कर सकोगे। शायद कुछ भूल-चूक हो रही हो और तुम्हारा दुख परिपूर्ण न पा रहा हो। दुख के अभ्यासी हैं लोग। कामवासना एक बड़ा प्राचीन अभ्यास है - सनातन - पुरातन ! जन्मोंजन्मों में उसका अभ्यास किया है। कभी उससे कुछ पाया नहीं, सदा खोया, सदा गंवाया; लेकिन अभ्यास रोएं - रोएं में समा गया है। आस्थितः परमाद्वैतं मोक्षार्थेऽपि व्यवस्थितः । - वह जो मोक्ष के लिए तैयार है और वह जो परम अद्वैत में अपनी आस्था की घोषणा कर चुका - है...। आश्चर्यं कामवशगो विकलः केलिशिक्षया । केलिशिक्षया – पुरानी कामवासना की शिक्षा के कारण, अभ्यास के कारण ! आश्चर्यं कामवशगो विकलः केलिशिक्षया । - पुराने अभ्यास के कारण बार-बार विकल हो जाता है। मौत के क्षण तक आदमी कामवासना के सपनों से भरा होता है। ध्यान करने बैठता है, तब भी कामवासना के विचार ही मन में दौड़ते रहते हैं। मंदिर जाता, मंदिर में बाहर से दिखाई पड़ता, भीतर से शायद वेश्यालय में हो । इसलिए अष्टावक्र कहते हैं, जनक, जल्दी मत कर। ये जाल बड़े पुराने हैं। तू ऐसा एक क्षण में मुक्त हो गया ? * अष्टावक्र यह नहीं कह रहे हैं कि तू मुक्त नहीं हुआ। अष्टावक्र की तो पूरी धारणा ही यही है कि तत्क्षण मुक्त हुआ जा सकता है। लेकिन वे जनक को सब तरफ से सावचेत कर रहे हैं कि कहीं से भी भ्रांति न रह जाए। यह मुक्ति अगर हो तो सर्वांग हो, यह कहीं से भी अधूरी न रह जाए। कहीं से भी रोगाणु फिर वापिस न लौट आएं। 'काम को ज्ञान का शत्रु जान कर भी, कोई अति दुर्बल और अंतकाल को प्राप्त पुरुष काम-भोग की इच्छा करता है—यही आश्चर्य है।' उद्भूतं ज्ञानदुर्मित्रम् अवधार्य अति दुर्बलः च अंतकालम् अनुश्रितः कामम् आकांक्षेत आश्चर्यम् ! तू क्या आश्चर्य की बातें कर रहा है जनक, असली आश्चर्य हम तुझे बताते हैं- अष्टावक्र कहते हैं— कि मर रहा है आदमी, सब जीवन- ऊर्जा क्षीण हो गई, सब जीवन बिखर गया, फिर भी कामवासना बची है। सिवाय कड़वे तिक्त स्वाद के कुछ भी नहीं छूटा है। सिवाय विषाद और घावों कुछ भी नहीं बचा है । सारा जीवन एक विफलता थी, फिर भी कामवासना बची है। कठिन है, दुस्तर है; क्योंकि अभ्यास अति प्राचीन है। तो तू ठीक से निरीक्षण कर ले, निदान कर ले, अंतश्चेतन में उतर, अचेतन में उतर । वस्तुतः जिसको फ्रॉयड ने अनकांशस, अचेतन कहा है – अष्टावक्र उसी की तरफ इशारा कर रहे हैं - कि तेरे चेतन में तो प्रकाश हो गया, लेकिन तेरे अचेतन की क्या गति है ? तेरे बैठक के कमरे 394 अष्टावक्र: महागीता भाग-1

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