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घड़ियों में मृत्यु-एषणा का भी पता चला। वह हैरान हुआ, क्योंकि वह तार्किक व्यक्ति था। उसे बड़ी बेचैनी हुई कि यह तो सारे जीवन में मैंने जो खोजा था, उसका विरोध हो जाएगा। मैंने तो सदा यही कहा था कि आदमी जीने के पागलपन से जी रहा है और कामवासना मनुष्य-जीवन का एकमात्र आधार है, ईरोस। अब आज अचानक जीवन के अंतिम पहर में यह भी भीतर पता चला कि मरने की भी आकांक्षा है। फिर ईरोस का क्या हुआ, जीवेषणा का क्या हुआ? ___ फ्रायड कोई लाओत्सु का अनुयायी तो नहीं था; अरस्तू का अनुयायी था। विपरीत को मानने में उसे बड़ी अड़चन थी। वैज्ञानिक बुद्धि का व्यक्ति था। चाहता था, एक से ही सब सुलझा लूं; एक ही धारणा से सब सुलझा लूं, दूसरी कोई धारणा बीच में न लानी पड़े। और यह तो दूसरी धारणा थी; न केवल दूसरी, सारे जीवन की खोज का विरोध थी, ऐंटी-थीसिस थी, उसका प्रतिवाद थी। मगर आदमी ईमानदार था। उसने छिपाया न। थोड़ा कम ईमान का आदमी होता तो दूसरी बात को उठाता ही नहीं। जीवन के अंतिम क्षण में कौन अपने जीवन के किए को लीपता-पोतता है! चालीस वर्षों के अथक श्रम से जिसने सिद्ध किया था, उसके विपरीत एक धारणा को अंत में डाल जाना सारे विचार को अस्त-व्यस्त करना होगा। थोड़ा कम ईमान का आदमी होता, थोड़ा कम प्रामाणिक होता, टाल जाता बात-मजबूरी कहां थी? कहता न किसी से, चुपचाप बैठा रहता। नहीं, लेकिन आदमी ईमानदार था। उसने फिक्र न की। उसने जाना कि अगर मेरे जीवन का परा दष्टिकोण भी गिरता हो. अगर मेरे वक्तव्य में विरोधाभास भी आता हो, तो आए; लेकिन जो मैंने जाना है, जो मैंने देखा है, उसे कहूंगा। बड़े झिझकते मन से उसने मृत्यु-एषणा का सिद्धांत प्रतिपादित किया।
और मेरे देखे, उसके जीवन भर की खोज अधूरी रह जाती अगर यह दूसरी बात उसे पता न चलती।
जब तुम जीवेषणा में बहुत गहरे खोज करोगे तो वहीं तुम छिपा हुआ पाओगे विरोध भी। इसीलिए तो कहते हैं कि जैसे ही जन्म हुआ, वैसे ही मृत्यु भी होनी शुरू हो गई। जीवन में ही छिपा है मृत्यु का . स्वर। बने नहीं, 'मिटना शुरू हो गया। जो भी बना है, मिटेगा। जो भी संगृहीत है, बिखरेगा।
तो यह जीवन जो हमारा है, इसके साथ-साथ मृत्यु की छाया भी चलती होगी। एक पैर जीवन का, तो दूसरा पैर मृत्यु का-दोनों पर सधे हम चलते हैं।
तीसरी खोज भारत की है। वह भारत की खोज यह है कि न तो हम जीवन हैं और न हम मृत्यु हैं; ये दोनों हमारे पैर हैं। द्वंद्व इसलिए मालूम होता है, अगर हम तीसरे को न देख पाएं। अगर तीसरा दिखाई पड़ जाए...सिंथीसिस।
ऐसा समझो, ईरोस की धारणा, जीवेषणा की धारणा है : थीसिस, एक वाद, एक सिद्धांत। फिर थानाटोस, मृत्यु-एषणा की धारणा है : प्रतिवाद, एंटी-थीसिस। अगर दो ही रहें तो विवाद ही होगा; हल होना मुश्किल हो जाएगा।
फ्रायड अगर थोड़े दिन और जीता-नहीं जीया, किसी अगले जन्म में, कहीं और खोजबीन करते-सिंथीसिस, संवाद भी घटित होगा; वह समन्वय की अंतिम दशा भी घटित होगी, जब वह साक्षी को भी पकड़ लेगा। वह ठीक रास्ते पर था; मंजिल अभी अधूरी थी, मगर रास्ता गलत न था। अभी मंजिल आई न थी, यात्रा अधूरी थी, लेकिन मार्ग ठीक था, दिशा ठीक थी। जीवन से मृत्यु पर पहुंचा था; अब एक ही उपाय बचा था कि जीवन और मृत्यु दोनों का अतिक्रमण कर जाता।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-11