________________
है, जहर है, कुछ लाभ नहीं; लेकिन फिर भी जब उठता है तब तुम खो जाते हो किसी झंझावात में, याद ही नहीं रहती । जब क्रोध जा चुका होता है उजाड़ कर तुम्हारे भीतर की सारी बगिया, तब फिर याद आती है, फिर पश्चात्ताप होता है । पर फिर पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत ! फिर तुम पछताते हो। यह पुरानी आदत हो गई है। क्रोध कर लिया, पछता लिया। फिर क्रोध कर लिया, फिर पछता लिया। क्रोध और पश्चात्ताप एक-दूसरे के संगी-साथी हो गए हैं; उनमें कुछ फर्क नहीं रहा है। तुम्हारे पश्चात्ताप ने क्रोध को रोका तो नहीं । साफ है कि तुमने क्रोध को अभी देखा नहीं है; सुन-सुन
मान रखा है कि बुरा है । यह तुम्हारा अपना आत्म - दर्शन नहीं है।
मैं एक कहानी पढ़ता था । बौद्ध कथा है। श्रावस्ती में एक सेठ था - मृगार । उसके लड़के की पत्नी थी विशाखा । विशाखा सुनने जाती थी बुद्ध को । मृगार कभी कहीं सुनने गया नहीं। वह धनलोलुप धन के पीछे पागल था। वह सबसे बड़ा श्रेष्ठि था श्रावस्ती का । श्रावस्ती भारत की सबसे ज्यादा धनी नगरी थी और मृगार उसका सबसे बड़ा धनपति था।
तुम्हें शायद खयाल में न हो, जो शब्द हिंदी में है सेठ, वह श्रेष्ठि का ही अपभ्रंश है, श्रेष्ठ का अपभ्रंश है। अब सेठ गाली जैसा लगता है। लेकिन कभी वह श्रेष्ठतम लोगों के लिए उपयोग
किया जाता था ।
नगर का सबसे बड़ा, श्रावस्ती का सबसे बड़ा श्रेष्ठि था मृगार, लेकिन कभी बुद्ध को सुनने न गया था। विशाखा उसकी सेवा करती - अपने ससुर की ; उसके लिए भोजन बनाती। लेकिन विशाखा को सदा पीड़ा लगती थी कि यह ससुर बूढ़ा होता जाता है और बुद्ध के वचन भी इसने नहीं सुने । जानना तो दूर, सुने भी नहीं। इसका जीवन ऐसे ही धन, पद, वैभव में बीता जा रहा है। यह जीवन यूं ही रेत में गंवाए दे रहा है। यह सरिता ऐसे ही खो जाएगी सागर में पहुंचे बिना ।
तो एक दिन जब मृगार भोजन करने बैठा और विशाखा उसे भोजन परोसती थी, तो वह कहने लगी : तात ! भोजन ठीक तो है ? सुस्वादु तो है ?
मृगार ने कहाः सदा तू सुंदर सुस्वादु भोजन बनाती है । यह प्रश्न तूने कभी पूछा नहीं, आज तू पूछती है, बात क्या है ? तेरा भोजन सदा ही सुस्वादु होता है।
क्योंकि यह सब
विशाखा ने कहाः आपकी कृपा है, अन्यथा भोजन सुस्वादु हो नहीं सकता, बासा भोजन है। मैं दुखी हूं कि मुझे आपको बासा भोजन खिलाना पड़ता है।
मृगार बोला : पागल ! बासा ! पर बासा तू खिलाएगी क्यों ? धन-धान्य भरा हुआ है कोठियों में, जो तुझे चाहिए प्रतिदिन उपलब्ध है। बासा क्यों ?
उसने कहा कि नहीं मैं वह नहीं कह रही, आप समझे नहीं । यह जो धन-धान्य है, शायद होगा आपके पिछले जन्मों के पुण्यों के कारण; लेकिन इस जीवन में तो मैंने आपको कोई पुण्य - पुरुषार्थ करते नहीं देखा। इस जीवन में तो मैंने आपको कोई पुण्य - पुरुषार्थ करते नहीं देखा, इसलिए मैं कहती हूं यह सब बासा है। होगा, पिछले जन्मों में आपने कुछ पुण्य किया होगा, इसलिए धनी हैं। लेकिन मैंने अपनी आंखों 'जबसे आपके घर में बहू हो कर आई हूं, मैंने आपका कोई पुण्य प्रताप, आपका कोई पुण्य-पुरुषार्थ, आपके जीवन में कोई प्रेम, कोई धर्म, कोई पूजा, कोई प्रार्थना, कोई ध्यान, कुछ भी नहीं देखा। इसलिए मैं कहती हूं, यह पिछले जन्मों के पुण्यों से मिला हुआ भोजन बासा है तात !
390
अष्टावक्र: महागीता भाग-1