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दूसरी बात, मैंने निश्चित कहा कि तुम किसी अंश में नहीं, पूरे के पूरे गलत हो। यह अहंकार की एक बड़ी बुनियादी व्यवस्था है कि अहंकार तुमसे कहता है कि तुम गलत हो माना, लेकिन अंश में गलत हो, अंश में तो सभी गलत होते हैं। थोड़ी गलती किसमें नहीं है ? थोड़ी गलती है, सुधार लेंगे। इससे तुम्हारे जीवन में एक तरह का सुधारवाद चलता है, क्रांति नहीं हो पाती। अहंकार कहता है, यह गलत है, इस को सुधार लो; यहां पलस्तर उखड़ गया है, पलस्तर कर दो, यहां जमीन में गड्ढा हो गया है, पाट दो; यहां की दीवाल गिरने लगी है, संभाल दो; यहां खंभा लगा दो; यहां नए खपड़े बिछा दो। अहंकार कहता है, मकान तो बिलकल ठीक है; जरा-जरा कहीं गड़बड़ होती है, उसको ठीक करते जाओ. एक दिन सब ठीक हो जाएगा। तो कभी ठीक न होगा। यह अहंकार के बचाव की बुनियादी तरकीब है कि वह कहता है कि थोड़ी-सी गलती है, बाकी तो सब ठीक है। ____ मैं तुमसे कहना चाहता हूं, जब तक अहंकार है तब तक सभी गलत है। ऐसा थोड़े ही होता है कि कमरे के एक कोने में प्रकाश है और पूरे कमरे में अंधकार है। ऐसा थोड़े ही होता है कि कमरे के जरा-से हिस्से में अंधकार है और बाकी में प्रकाश है। प्रकाश होता है तो पूरे कमरे में हो जाता है। प्रकाश नहीं होता तो पूरे कमरे में नहीं होता।
साक्षी जब जागता है तो सर्वांश में जागता है। ऐसा नहीं कि थोड़ा-थोड़ा जग गए, थोड़ा-थोड़ा सोए। जब तुम्हारा ध्यान फलता है तो समग्ररूपेण फलता है। ___ इस अहंकार की तरकीब से बचना, नहीं तो तुम एक सुधारवादी, एक रिफार्मिस्ट हो जाओगे।
और तुम्हारे जीवन में वह महाक्रांति न हो पाएगी, जो महाक्रांति इस महागीता में जनक के जीवन में हुई। वह क्षण में हो गई, क्योंकि जनक ने देख लिया कि मैं पूरा का पूरा गलत था। ___ इसे मैं फिर दोहराऊं कि या तो तुम पूरे गलत होते हो, या तुम पूरे सही होते हो; दोनों के बीच में कोई पड़ाव नहीं है। अहंकार को यह बात माननी बहुत कठिन है कि मैं पूरा का पूरा गलत हूं। अहंकार कहता है, होऊंगा गलत, लेकिन कुछ तो सही होऊंगा। जिंदगी पूरी की पूरी गलत मेरी?
मगर यहीं से क्रांति की शुरुआत होती है।
एक बड़ी प्राचीन कथा है कि एक ब्राह्मण सदा लोगों को समझाता कि जो कुछ करता है परमात्मा करता है; हम तो साक्षी हैं, कर्ता नहीं। परमात्मा ने उसकी परीक्षा लेनी चाही। वह गाय बन कर उसकी बगिया में घुस गया और उसके सब वृक्ष उखाड़ डाले और फूल चर डाले और घास खराब कर दी
और उसकी सारी बगिया उजाड़ डाली। जब वह ब्राह्मण अपनी पूजा-पाठ से उठ कर बाहर आयापूजा-पाठ में वह यही कह रहा था कि तू ही है कर्ता, हम तो कुछ भी नहीं हैं, हम तो द्रष्टा-मात्र हैंबाहर आया तो द्रष्टा वगैरह सब भूल गया। वह बगिया उजाड़ डाली थी; वह उसने बड़ी मेहनत से बनाई थी, उसका उसे बड़ा गौरव था। सम्राट भी उसके बगीचे को देखने आता था। उसके फूलों का कोई मुकाबला न था; सब प्रतियोगिताओं में जीतते थे। वह भूल ही गया सब पूजा-पाठ, सब साक्षी इत्यादि। उसने उठाया एक डंडा और पीटना शुरू किया गाय को। उसने इतना पीटा कि वह गाय मर गई। तब वह थोड़ा घबड़ाया कि यह मैंने क्या कर दिया! गौ-हत्या ब्राह्मण कर दे? और ब्राह्मणों की जो संहिता है, मनुस्मृति, वह कहती है, यह तो महापाप है। इससे बड़ा तो कोई पाप ही नहीं है। गौ-हत्या! वह कंपने लगा। लेकिन तभी उसके ज्ञान ने उसे सहारा दिया। उसने कहा, 'अरे नासमझ!
उद्देश्य-उसे जो भावे
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