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एक आदमी के संबंध में मैंने सुना, वह बड़ा परेशान था। उसे एक वहम हो गया कि रात उसने एक सपना देखा - वह मुंह खोल कर सोता था, बचपन से उसकी खराब आदत पड़ गई थी – रात उसने सपना देखा कि मुंह उसका खुला है, और एक सांप उसमें घुस गया। घबड़ाहट में नींद तो खुल गई, लेकिन जब उसकी नींद खुली, तब भी सपना ऐसा प्रगाढ़ था कि उसने बराबर सांप की पूंछ सरकते देखी - अंतिम पूंछ । वह चीखा भी, चिल्लाया भी, लेकिन तब तक वह कंठ के अंदर उतर गया। अब उसके बड़े इलाज किये गये, एक्सरे लिये गये, दवाइयां दी गयीं। डाक्टर कहें उससे कि कोई सांप नहीं है, क्योंकि एक्सरे में आता नहीं। वह कहे, हम तुम्हारी मानें कि अपनी ? वह पेट में चलता है!
अब तुम थोड़ा सोचो उस आदमी को, अगर तुम भी ऐसा विचार करो तो चलने लगेगा। विचार बड़ी क्षमता है। कल्पना की बड़ी शक्ति है। उसकी कल्पना प्रगाढ़ हो गई। वह बैठ न सके, पेट में दर्द हो; कहीं सांप यहां सरक रहा है, कहीं वहां सरक रहा है ! और उसका जीवन बेचैनी से भर गया। वह रात सो न सके। काम-धाम सब बंद हो गया। चिकित्सकों के पास जाये, वे कहें कि सांप हो भीतर तो हम इलाज करें, कुछ है ही नहीं ।
संयोग की बात, वह एक सम्मोहनविद के पास गया। उसने कहा कि सांप है। कौन कहता है नहीं है ? कहने वाले गलत । एक्सरे गलत होगा। लेकिन सांप है।
उसकी बात सुनते ही वह आदमी आश्वस्त हुआ, उसने कहा कि गुरु मिले ! आप की ही तलाश कर रहा था। मानते ही नहीं लोग । अब मैं मरा जा रहा हूं...।
और उसकी तकलीफ तो सच थी, चाहे सांप झूठ हो। इसे थोड़ा समझ लेना। उसकी तकलीफ तो सच थी, चाहे सांप झूठ हो । सांप झूठ हो या सच हो, इससे क्या फर्क पड़ता है? उसकी तकलीफ तो सच थी। वह दुबला हो गया, सूख कर हड्डी-हड्डी हो गया। उसकी एक ही घबड़ाहट, एक ही बेचैनी, कि इस सांप से कैसे छुटकारा होगा। सब अस्तव्यस्त उसका जीवन हो गया।
लेकिन उस सम्मोहनविद ने कहा, हम हल कर लेंगे। उसने इंतजाम किया। उसने उसकी संडास में एक सांप रखवा दिया। जब वह सुबह जाये मल विसर्जन को, तो घर के लोगों को कहा कि सांप छोड़ देना। बस बाकी मैं निपटा लूंगा ।
जब वह मल-विसर्जन को गया, तो सांप उसने सरकता देखा । नीचे देखा, तो भागा, खुश हो कर बाहर आया। उसने कहा कि देखो, लाओ तुम्हारे एक्सरे! वह डाक्टरों के पास गया, उसने कहा कि देखो, सांप था, निकल गया!
उसी दिन से वह ठीक हो गया।
'कोई औषधि नहीं' का अर्थ यह होता है कि बीमारी झूठ है। इस झूठ बीमारी को झूठ जान लेने
छुटकारा है। अगर बीमारी सच होती तो इलाज हो सकता था। अगर तुम परमात्मा से दूर हो गये होते तो मिलने की कोई व्यवस्था हो सकती थी। तुम दूर हुए नहीं, और तुम सोचते हो कि दूर हो गये। अगर तुमने अपनी आत्मा से संबंध छोड़ दिया होता तो कोई रास्ता बना लेते, कोई सेतु बनता, विज्ञान कोई उपाय खोज लेता कि फिर से कैसे जुड़ा जाये। लेकिन तुम कभी आत्मा से अलग हुए नहीं । तुम जुड़े हो । अगर मछली सागर के बाहर चली गई होती तो हम सागर में वापिस फेंक देते। मछली सागर
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1