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रहा है; मगर कुछ उपाय नहीं । जब भी वह मंत्र पड़ता है, बंदरों का स्मरण आ जाता है।
वह पागल संन्यासी बोला, किस्सा खत्म ! अब भाग जा यहां से !
दूसरे दिन पौराणिक फिर गांव में कथा कह रहा था। उसने लोगों से कहा : न तो पाप से लड़ो, न पाप से डरो, न पाप से भागो, न पाप से बचो – बस देखते रहो !
लड़ने से... वह आदमी बंदर से लड़ रहा है कि बंदर न आने पाए ! तुम जिससे लड़ोगे, वही आएगा। तुम्हारा लड़ना ही तुम्हारा आकर्षण बन जाएगा, जो व्यक्ति कामवासना से लड़ेगा, कामवासना ही उठेगी। जो लोभ से लड़ेगा, लोभ ही उठेगा। जो क्रोध से लड़ेगा, वह और क्रोध उठाएगा। क्योंकि जिससे तुम लड़ोगे, उसका स्मरण बना रहेगा।
तुमने खयाल किया, जिसे तुम भूलना चाहते हो उसे भूल नहीं पाते ! क्योंकि भूलने के लिए भी तो बार-बार याद करना पड़ता है, उसी में तो याद बन जाती है। किसी को तुम्हें भूलना है, कैसे भूलो ? भूलने की चेष्टा में तो याद सघन होगी। भूलने से कभी कोई किसी को भूल पाया? लड़ने से कभी कोई जीता ?
इस जीवन का यह विरोधाभासी नियम ठीक से समझ लेना : जिससे तुम लड़े उसी से तुम हारोगे। लड़ना ही मत ! संघर्ष सूत्र नहीं है विजय का । साक्षी ! बैठ कर देखते रहो ।
अब बंदर उछल-कूद रहे हैं, करने दो। वे अपने स्वभाव से ही चले जाएंगे। तुमने अगर उत्सुकता न ली, तो बार-बार तुम्हारे द्वार न आएंगे। तुमने अगर उत्सुकता ली -पक्ष में या विपक्ष में - तो दोस्ती बनी।
अब वह जो आदमी मंत्र पढ़ रहा है और सोचता है बंदर न आएं, शायद इस मंत्र पढ़ने के पहले कभी उसके मन में बंदर न आए होंगे - तुम्हारे मन में कभी आए ? तुम कोशिश करना, कल मंत्र कोई भी चुन लेना – राम राम राम - और कोशिश करना, बंदर न आएं। बंदर ही नहीं, हनुमान जी भी चले आएंगे उनके पीछे। और कई बंदरों को ले कर, पूरी फौज - फांटा चला आएगा। और इसके पहले कभी ऐसा न हुआ था।
तुम्हारा विरोध, तुम्हारे रस की घोषणा है। लड़ना मत, अन्यथा हारोगे ।
इस सूत्र की महत्ता को, महिमा को, गरिमा को समझो। हो रहा है, हो रहा है । न तुमसे पूछ कर शुरू हुआ है, न तुम से पूछ कर बंद होने का कोई कारण है। जो हो रहा है, होता रहा है, होता रहेगा – तुम देखते रहो। बस इसमें ही क्रांति घट जाती है।
दुनिया में दो तरह के लोग हैं। एक हैं- भोगी । भोगी कहते हैं : जो हो रहा है, यह और जोर से हो । एक हैं - योगी, जो कहते हैं : जो हो रहा है, यह बिलकुल न हो। ये दोनों ही संघर्ष में हैं। योगी कह रहा है, बिलकुल न हो; जैसे कि उसके बस की बात है! जैसे उससे पूछ कर शुरू हुआ हो! जैसे उसके हाथ में है !
भोगी कह रहा है, और जोर से हो, और ज्यादा हो ! सौ साल जीता हूं, दो सौ साल जीऊं । एक स्त्री मिली, हजार स्त्रियां मिलें। करोड़ रुपया मेरे पास है, बीस करोड़ रुपया मेरे पास हो । भोगी कह रहा है, और जोर से हो; वह भी सोच रहा है : जैसे उससे पूछ कर हो रहा है; उसकी अनुमति से हो रहा है; उसकी आकांक्षा से हो रहा है।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1