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परमात्मा कोमल के साथ है। निर्बल के बल राम !
एक फूल खिला है। पास में पड़ी है एक चट्टान । चट्टान जरूर दिखती है मजबूत; फूल कमजोर । लेकिन तुमने कभी फूल की शक्ति देखी – जीवन की शक्ति! कौन चट्टान को सिर झुकाता है। तुम पत्थर को लेकर तो भगवान के चरणों में चढ़ाने नहीं जाते। तुम चट्टान, सोचकर कि बड़ी मजबूत है, चलो अपनी प्रेयसी को भेंट कर दें, ऐसा तो नहीं करते। फूल तोड़कर ले जाते हो । फूल का बल है ! फूल की गरिमा है ! उसकी कोमलता उसका बल है । उसका खिलाव उसका बल है। उसका संगीत, उसकी सुगंध उसका बल है। उसकी निर्बलता में उसका बल है। सुबह खिला है, सांझ मुरझा जायेगा—यही उसका बल है। लेकिन खिला है। चट्टान कभी नहीं खिलती - बस है । चट्टान मुर्दा है। फूल जीवंत है; मरेगा, क्योंकि जीया है। चट्टान कभी नहीं मरती, क्योंकि मरी ही है।
कोमल बनो! आंसुओं को फिर से पुकारो ! तुम्हारी आंखों को गीत और कविता से भरने दो। 1 अन्यथा तुम वंचित रहोगे बहुत-सी बातों से । फिर तुम्हारा परमात्मा भी एक तर्कजाल रहेगा, हृदय की अनुभूति नहीं; एक सिद्धांत - मात्र रहेगा, एक सत्य का स्वाद और सत्य की प्रतीति नहीं ।
जो आंसू बहाकर रोये, सौभाग्यशाली हैं, वे बलशाली हैं। उन्होंने फिक्र न की कि तुम क्या को उनको भी फिक्र तो लगती है कि लोग क्या कहेंगे। जब कोई आदमी जार-जार रोने लगता है तो उसे भी फिक्र लगती है कि लोग क्या कहेंगे। बल चाहिए रोने को कि फिक्र छोड़े कि लोग क्या कहेंगे। कहने दो। होंगे बदनाम तो हो लेने दो! हमको जी खोलकर रो लेने दो !
जब कोई आदमी रोता है, छोटे बच्चे की तरह बिसूरता है, तो थोड़ा सोचो उसका बल ! तुम सबकी फिक्र नहीं की उसने । उसने यह फिक्र नहीं की कि लोग क्या कहेंगे कि मैं यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हूं और रो रहा हूं, कोई विद्यार्थी देख ले ! कि मैं इतना बड़ा दुकानदार और रो रहा हूं, कोई ग्राहक देख ले! कि मैं इतना बलशाली पति और रो रहा हूं, और पत्नी पास बैठी है, घर जाकर झंझट खड़ी होगी । . कि मैं बाप हूं और रो रहा हूं, और बेटा देख ले ! छोटे बच्चे देख लें ! सम्हाल लो अपने को ।
अहंकार सम्हाले रखता है। यह निरहंकार रोया । अहंकार अपने को सदा नियंत्रण में रखता है। निरहंकार बहता है; उसमें बहाव है।
जे सुलगे ते बुझि गये, बुझे ते सुलगे नाहिं | रहिमन दाहे प्रेम के, बुझि बुझि के सुलगाहिं । ।
अंगारे जलते हैं— जे सुलगे ते बुझि गये - लेकिन एक घड़ी आती है, बुझ जाते हैं, फिर तुम दुबारा उन्हें नहीं जला सकते। राख को किसी ने कभी दुबारा अंगारा बनाने में सफलता पायी ? जे सुलगे ते बुझि गये, बुझे ते सुलगे नाहिं |
फिर एक दफे बुझकर वे कभी नहीं सुलगते। रहिमन दाहे प्रेम के— लेकिन जिनके हृदय में प्रेम का तीर लगा, उनका क्या कहना रहीम !
रहिमन दाहे प्रेम के, बुझि - बुझि के सुलगाहिं ।
बार-बार जलते हैं! बार-बार बुझते हैं ! फिर-फिर सुलग जाते हैं।
प्रेम की अग्नि शाश्वत है, सनातन है ।
जिन्होंने मुझे प्रेम से सुना, वे रो पायेंगे। जिन्होंने मुझे सिर्फ बुद्धि से सुना वे कुछ निष्कर्ष, ज्ञान
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1